धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—718

एक गाँव में राघव नाम का युवक रहता था। वह बहुत होनहार था, लेकिन हर छोटी-बड़ी बात पर चिंतित रहने की आदत ने उसका चैन छीन लिया था। अगर खेत में बादल आते, तो वह सोचने लगता—“कहीं फसल न खराब हो जाए।” अगर धूप तेज़ होती, तो चिंता करता—“अब पानी कहाँ से मिलेगा?”

हर समय उसका मन भविष्य की विपरीत परिस्थितियों के बारे में सोचता रहता, और धीरे-धीरे वह अंदर से बेचैन रहने लगा।

एक दिन गाँव के एक संत ने राघव को उदास देखा और पूछा, “क्या हुआ बेटा? चेहरा इतना परेशान क्यों है?”

राघव बोला, “महाराज, हर बार कुछ न कुछ गड़बड़ हो ही जाती है। कभी मौसम, कभी पैसा, कभी लोग—मुझे डर रहता है कि सब कुछ बिगड़ जाएगा।”

संत मुस्कराए और उसे पास के तालाब पर ले गए। वहाँ शांत पानी में उन्होंने एक पत्थर फेंका। पानी में गोल-गोल लहरें फैल गईं। संत बोले, “देखो राघव, यह पत्थर बाहरी परिस्थिति है—लेकिन लहरें किसने पैदा कीं?”

राघव बोला, “पत्थर ने।” संत ने कहा, “नहीं, पत्थर ने तो बस छुआ। लहरें पानी ने खुद अपने भीतर पैदा कीं। उसी तरह परिस्थितियाँ तो आती-जाती रहती हैं, पर अस्थिरता तुम्हारा मन खुद बनाता है, जब वह उन पर अधिक सोचने लगता है।”

यह बात राघव के हृदय में उतर गई। उसने निश्चय किया कि वह परिस्थिति पर नहीं, अपने मन की स्थिरता पर ध्यान देगा। धीरे-धीरे उसने ध्यान, सेवा और सकारात्मक सोच का अभ्यास शुरू किया। अब जब भी विपरीत हालात आते, वह मुस्करा कर कहता— “तूफ़ान बाहर नहीं, मेरे भीतर शांति है।”

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, जब मन बार-बार प्रतिकूल परिस्थितियों पर सोचता है, तो वह अस्थिर हो जाता है। लेकिन जो व्यक्ति अपने विचारों पर नियंत्रण रखता है, वह हर परिस्थिति में शांत और स्थिर रह सकता है।

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