धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—728

एक प्राचीन आश्रम में महर्षि अनुराग नाम के संत रहते थे। दूर-दूर से लोग उनके पास ज्ञान लेने आते। एक दिन एक युवक आश्रम पहुँचा और बोला— “गुरुदेव, मैं बहुत काम करना चाहता हूँ, आगे बढ़ना चाहता हूँ… पर पता नहीं क्यों, मेरा मन किसी काम में लगता ही नहीं। मुझे लगता है कि कोई अदृश्य शत्रु मुझे पीछे खींच रहा है। कृपया मुझे बताइए कि मेरा असली दुश्मन कौन है?”

संत मुस्कुराए और बोले, “कल तड़के चार बजे नदी किनारे मिलना। वहां मैं तुम्हें तुम्हारा शत्रु दिखाऊँगा।”

युवक आँख खुलते ही सोचने लगा— “इतनी ठंडी सुबह में कौन उठे? अभी थोड़ा और सो लेता हूँ…” लेकिन संत का वचन याद आया, वह घसीटते हुए उठा और नदी किनारे पहुँचा।
संत पहले से वहाँ खड़े थे।

संत बोले, “अच्छा हुआ तुम आ गए। अगर तुम आधा घंटा और देर करते तो तुम्हारा शत्रु जीत जाता।”

युवक चौंका— “शत्रु? कौन सा शत्रु?”

संत ने नदी की ओर इशारा करते हुए कहा— “उधर देखो।”

उसे अपनी ही परछाईं दिख रही थी।

युवक बोला— “गुरुदेव, यह तो मैं हूँ!”

संत बोले— “हाँ, यही तो तुम हो… और यही तुम्हारा पहला और सबसे बड़ा शत्रु है — आलस।
जब सुबह उठने का समय आया, उसने सबसे पहले तुम पर हमला किया। अगर तुम उससे हार जाते, तो आज यहाँ खड़े भी न होते। आलस ऐसा चोर है, जो हमारी प्रतिभा, समय और अवसर—सब कुछ चुरा लेता है।”

युवक ध्यान से सुनता रहा।

“बेटा, संसार में बाहरी शत्रु कभी-कभी ही नुकसान पहुंचाते हैं, लेकिन अंदर का शत्रु—आलस—हर दिन, हर पल हमला करता है। यह तुम्हारे सपनों को सोने पर मजबूर करता है,तुम्हारी क्षमता को जंजीरों में बाँध देता है, और जीवन की ऊँचाइयों तक पहुँचने ही नहीं देता।”

संत ने एक पत्थर उठाकर युवक के हाथ में रख दिया और बोले— “इसे नदी में फेंको।”

युवक ने पत्थर फेंक दिया।

संत बोले— “इस पत्थर की तरह आलस भी हमें भारी बनाकर डुबो देता है। जिस दिन तुम आलस को फेंकना सीख जाओगे, उसी दिन से तुम्हारे जीवन की नाव आगे बढ़ने लगेगी।”

उसने झुककर प्रणाम किया और बोला— “गुरुदेव, आज से मेरा पहला युद्ध अपने आलस से होगा।
उस पर जीतकर ही मैं जीवन में जीत पाऊँगा।”

संत मुस्कुराए— “यही समझना ही जीवन का पहला विजय-चरण है।”

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, आलस कोई आदत नहीं, एक अदृश्य शत्रु है। यह हमें वहीं रोक देता है, जहाँ हमें आगे बढ़ना चाहिए। इसे हराकर ही सफलता, सम्मान और शांति को पाया जा सकता है।

Shine wih us aloevera gel

Related posts

ओशो : संत बनना कठिन

Jeewan Aadhar Editor Desk

ओशो : साधना

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी के प्रवचनों से—143