एक बार एक गाँव में एक साधु रहते थे। उनके पास दूर-दूर से लोग सलाह लेने आया करते थे। एक दिन एक युवक उनसे मिलने आया। चेहरे पर तेज था, कपड़े अच्छे थे, और शब्द बहुत मीठे— परन्तु गाँव वाले उसे सम्मान नहीं देते थे। वह साधु के सामने बैठकर बोला, “गुरुदेव! लोग मेरे बारे में गलत सोचते हैं। कोई मुझे समझता ही नहीं। मैं क्या करूँ कि लोग मुझे अच्छा समझें?”
साधु मुस्कुराए। उन्होंने युवक से कहा, “मेरे साथ चलो।”
दोनों नदी किनारे पहुँचे। वहाँ एक छोटा पौधा हवा में झूम रहा था। साधु बोले, “क्या तुम जानते हो, यह पौधा कौन है?”
युवक बोला, “नहीं।”
साधु ने कहा, “जब यह बीज था, तब किसी ने इसका रूप नहीं देखा था। परंतु जिस दिन इसने फल देना शुरू किया, लोग खुद-ब-खुद इसे पहचानने लगे। क्योंकि पहचान चेहरे से नहीं, व्यवहार और फल से बनती है।”
युवक ने पूछा, “पर इसका मेरी जिंदगी से क्या संबंध?”
साधु ने शांत स्वर में कहा, “बेटा, मनुष्य का परिचय उसके कपड़ों, पद या शब्दों से नहीं होता।
तुम जैसे व्यवहार करोगे, वैसी ही पहचान लोग अपने मन में तुम्हारी बना लेंगे। यदि तुम हर किसी से नम्रता, ईमानदारी और सहानुभूति से बात करोगे, तो लोग तुम्हें चाहकर भी गलत नहीं समझ पाएंगे। व्यवहार ही वो दर्पण है, जो दुनिया को आपका असली चेहरा दिखाता है।”
युवक की आँखें खुल गईं। उसने प्रण किया कि आज से वह अपने व्यवहार को ही अपनी पहचान बनाएगा।
धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, आपका व्यवहार ही आपका परिचय है। शब्द भूल जाते हैं, रूप बदल जाता है, लेकिन अच्छा व्यवहार जीवन भर लोगों के दिलों में अपनी जगह बनाए रखता है।








