त्रिकूट पर्वत पर एक शक्ति शाली हाथी रहता था । गर्मी के दिन थे। उसी पर्वत के पास एक बहूत बड़ा सरोवर था। गजेन्द्र आपी हथनियों के साथ सरोवर में जल—क्रीड़ा करने के लिए गया। सरोवर के चारों ओर रंग—बेरंगे फूल खिले हुए थे तथा सरोवर का पानी निर्मल तथा स्वच्छ था। हथिनियों और बच्चों से घिरा हुआ वह आन्नद— विहार में मग्न था—अर्थात् गजेन्द्र जिस समय इतना उन्मत हो रहा था,उसी समय प्रारब्ध की प्ररेणा से एक बलवान् ग्राह ने क्रोध में भरकर उसका पैर पकड़ लिया।
इस प्रकार अकस्मात् विपत्ति में पकड़कर उस बलवान् गजेन्द्र ने अपनी शक्ति के अनुसार अपने को छुड़ाने की बड़ी चेष्टा की परन्तु कोई भी गजेन्द्र का पांव ग्राह से नहीं छुड़ा सका। अन्त में हाथी को एक कमल का फुल दिखाई दिया, उसने उसको पकड़ा। कहते हैं डूबते हुए को तिनके का सहारा मिल गया और कई कहते हैं कि गजेन्द्र ने फूल उठाया और प्रभु चरणों में अर्पित किया और सहायता के लिए प्रभु से प्रार्थना की, हे प्रभो इस संकट से केवल आप ही मुझे छुड़ा सकते हो, परिवारवाले सब खड़े खड़े देख रहे हैं ,कुछ भी करने में समर्थ नहीं हैं। हे नाथ! आप मुझे अपनी शरण में लिजिए और मेरी रक्षा किजिए।
हे प्रभों! मैं आपकी शरण में हूं। आपके सिवाय कोई मेरा उद्धार नहीं कर सकता। इस प्रकार विशुद्ध मन से की गई प्रार्थना को सुनकर परमात्मा नगें पांव दौड़े आए। ग्राह का संहार किया और शरण में आए हुए गजेन्द्र का उद्धार किया।
धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, जब आप अपनी ताकत का अभियान त्याग की प्रभु की शरण में चले जाते है तो आपका कल्याण होना निश्चित है। लेकिन जब तक आप अपनी ताकत का अहं करते है, तब तक आप दुखी रहते है। इसलिए ध्यान रखना धन, यौवन और बल का कभी अभिमान मत करना। इनका अभियान करने करने वाले रावण, कंस, बाली और दर्योधन का सर्वविनाश हुआ है। स्वयं का परमात्मा के चरणों में अर्पित कर दो, वो आपका कल्याण करेंगे।