एक बार की बात है, एक संत नदी किनारे आश्रम में रहते थे। उनके पास दूर-दूर से लोग सलाह लेने आते थे। एक दिन एक युवक आया और बोला, “महाराज, मैं बहुत मेहनत करता हूँ, लेकिन फिर भी काम अधूरा रह जाता है। लगता है मेरी क्षमता ही कम है।”
संत मुस्कुराए और उसे अगले दिन सुबह सूर्योदय से पहले आने को कहा।
अगली सुबह संत ने युवक को दो काम दिए— पहला, सूरज निकलने से पहले पानी भरना। दूसरा, दोपहर बाद वही काम फिर से करना।
सुबह ठंडी हवा में, शांत मन से युवक ने थोड़े समय में पानी भर लिया। दोपहर की धूप में वही काम करते-करते वह थक गया, पसीने से लथपथ हो गया और आधा काम भी ठीक से नहीं कर पाया।
तब संत ने कहा, “बेटा, काम वही था, साधन वही थे, पर समय बदलते ही परिणाम बदल गया। सुबह समय ने तुम्हारी क्षमता बढ़ा दी और दोपहर ने उसे घटा दिया।”
फिर संत ने आगे समझाया, “जो व्यक्ति समय की पहचान कर लेता है, वही अपनी शक्ति को कई गुना बढ़ा लेता है। सही समय पर किया गया छोटा प्रयास भी बड़ा फल देता है, और गलत समय पर किया गया बड़ा प्रयास भी कमजोर पड़ जाता है।”
युवक की आँखें खुल गईं। उसे समझ आ गया कि समस्या उसकी मेहनत में नहीं, बल्कि समय के चुनाव में थी।
धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, समय का सही उपयोग करने से काम आसान हो जाता है और हमारी कार्यक्षमता स्वयं बढ़ने लगती है। जो समय का सम्मान करता है, समय उसका सम्मान करता है।








