एचएयू के दो दिवसीय वचुअल कृषि मेला (खरीफ) का विधिवत शुभारंभ
हिसार,
हरियाणा एक कृषि प्रधान राज्य है तथा इसकी अर्थव्यवस्था खेती पर निर्भर करती है। हरियाणा के अलग से अस्तित्व में आने के बाद फसलों का उत्पादन बढ़ा है तथा हरित क्रांति का उपयोग हरियाणा के किसानों ने सबसे ज्यादा करके देश के खाद्यान भंडार भरे हैं। हरित क्रांति के बाद प्रमुख फसलों के क्षेत्र एवं पैदावार में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। यह सब किसानों एवं वैज्ञानिकों के सामूहिक प्रयास से ही सम्भव हो पाया है। हरियाणा में आज भी बहुत से किसान गेहूं-चावल की परम्परागत खेती कर रहे हैं जिससे उनको खेती से अधिक आमदनी नहीं हो पा रही है। खेत से अधिक पैदावार व आमदनी के लिए हमें परम्परागत खेती छोडक़र कृषि विविधीकरण को अपनाना होगा।
यह बात भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के उप महानिदेशक (कृषि विस्तार) डॉ. ए.के. सिंह ने मुख्य अतिथि के तौर पर हरियाणा कृषि विवि. में शुरू हुए कृषि मेले के ऑनलाइन उद्घाटन अवसर पर कही। कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. समर सिंह ने की। मेले का मुख्य विषय ‘फसल विविधिकरण’ रखा गया है। मुख्य अतिथि ने कहा कि एचएयू का विस्तार शिक्षा निदेशालय अपने कृषि विज्ञान केन्द्रों के माध्यम से विस्तार गतिविधियों जैसे प्रदर्शन प्लाट, प्रशिक्षण, खेत दिवस, किसान-वैज्ञानिक परिचर्चा, लघु किसान मेले आदि के द्वारा किसानों को समय-समय पर कृषि विविधीकरण के बारे में जागरूक कर रहा है। औद्योगीकरण एवं शहरीकरण के कारण कृषि योग्य भूमि कम होती जा रही है। किसानों को कृषि उत्पादन को बढ़ाने के लिए नई तकनीकों से अवगत कराने की आवश्यकता है। किसानों को विश्वविद्यालय द्वारा विकसित जीरो-टिलेज, लेजऱ लैवलिंग, बैड प्लांटिंग, ड्रिप व फव्वारा सिंचाई पद्धति, बायो गैस प्लांट, वर्मी कम्पोस्टिंग, हरी खाद आदि को अपनाने की आवश्यकता है। कृषि विज्ञान केन्द्रों के वैज्ञानिक किसानों को प्रेरित करें कि वे नई-नई तकनीकों को अपनाएं ताकि भारत सरकार का किसानों की आय 2022 तक दुगुनी करने का लक्ष्य प्राप्त हो सके। जलवायु परिवर्तन कृषि के लिए अनेक समस्याएं उत्पन्न कर रहा है, जो हमारे खाद्य उत्पादन को प्रभावित कर रहा है। बढ़ती आबादी व बदलते जलवायु में पैदावार को किस तरह बढ़ाएं यह सब उपाय करने की जिम्मेदारी हमारे कृषि वैज्ञानिकों के कंधों पर है। उन्होंने किसानों से आह्वान किया कि वे जल संसाधनों का बेहतर प्रयोग, वाटरशैड विकास, वर्षा जल संचय तथा उन्नत तकनीकों को अपनाकर पानी का उचित प्रबंध कर सकते हैं। साथ ही बूंद-बूंद पानी का सदुपयोग करें तथा ऐसा करने के लिए भूमिगत पाईप लाइन, टपका सिंचाई तथा फव्वारा सिंचाई जैसी पद्धतियां अपनाएं। इस अवसर पर सभी कृषि विज्ञान केंद्रों पर एक-एक प्रगतिशील किसान को सम्मानित किया गया। साथ ही दो पुस्तकों का भी विमोचन किया गया।
नई तकनीकों को अपनाने के लिए किसानों को प्रेरित करें वैज्ञानिक : समर सिंह
हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. समर सिंह ने मेले के विधिवत शुभारंभ पर मुख्यातिथि का स्वागत करते हुए मेले की विस्तारपूर्वक जानकारी दी। उन्होंने बताया कि हमारे वैज्ञानिकों ने फसलों, फलों, सब्जियों व चारे का अधिक उत्पादन देने वाली, रोगरोधी व कम समय में पककर तैयार होने वाली लगभग 255 किस्मों का विकास किया है। प्रदेश में उन्नत बीज उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए विश्वविद्यालय हर वर्ष विभिन्न फसलों का करीब 19500 क्विंटल से अधिक उन्नत बीज पैदा करके राज्य के विभिन्न निगमों व किसानों को वितरित करता है। शोध कार्यक्रमों को कृषि की बदली परिस्थितियों के अनुसार बढ़ावा देने तथा कृषि की लाभकारी तकनीकों के व्यावसायीकरण के लिए अंतरराष्ट्रीय तथा राष्ट्रीय स्तर पर कुल 527 द्विपक्षीय समझौते किए गए हैं। विश्वविद्यालय ने अपनी 43 नई तकनीकों पर पेटेंट प्राप्त करने के लिए भारतीय पेटैंट आफिस में आवेदन किया हुआ है जिनमें से 17 की स्वीकृति मिल चुकी है। इसके अलावा उन्होंने बताया कि देश के खाद्यान भंडारण में प्रदेश दूसरे स्थान पर है और अकेला हरियाणा देश का 60 प्रतिशत बासमती का निर्यात करता है, जो अपने आप में बहुत बड़ी उपलब्धि है। इस वर्चुअल कृषि मेले के लिए करीब 50 हजार किसान अपने मोबाइल नंबर के माध्यम से पंजीकरण करवा चुके हैं। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक हर समय किसानों की समस्या के समाधान के लिए तत्पर हैं। उन्होंने कृषि विज्ञान केन्द्रों के वैज्ञानिकों से आह्वान किया कि वे किसानों को प्रेरित करें कि वे नई-नई तकनीकों को अपनाएं ताकि भारत सरकार का किसानों की आय 2022 तक दुगुनी करने का लक्ष्य प्राप्त हो सके। उन्होंने कहा कि हरियाणा प्रदेश के गठन से लेकर अब तक किसानों द्वारा धान-गेहूं फसल चक्र अपनाने के कारण कुछ जिलों में सिंचाई के स्रोत घटते जा रहे हैं तथा फसल उत्पादन में भी स्थिरता आ गई है। इस समस्या के समाधान के लिए कृषि में फसल विविधीकरण आज की मुख्य आवश्यकता है। इसके लिए किसानों को विश्वविद्यालय की कम पानी में अधिक उत्पादन देने वाली फसलें व परम्परागत खेती के साथ-साथ बागवानी व सब्जी उत्पादन को अपनाना चाहिए जिससे किसानों की कृषि आधारित आमदनी बढ़ सके। आज के इस सूचना क्रांति के युग में सूचना प्रौद्योगिकी का प्रयोग करके हम किसानों तक कृषि की नवीनतम तकनीकों को शीघ्रातिशीघ्र पहुंचा रहेे हैं। इस दिशा में इस विश्वविद्यालय ने हिसार, करनाल एवं बावल में निशुल्क दूरभाष सेवा शुरू करना, विश्वविद्यालय परिसर व कृषि विज्ञान केन्द्रों में सात सामुदायिक रेडियो स्टेशनों की स्थापना, सभी कृषि विज्ञान केन्द्रों पर स्वचालित मौसम केन्द्र स्थापित करके किसान हित में अच्छी पहल की है।
इन्होंने भी बढ़ाई कार्यक्रम की शोभा
वर्चुअल कृषि मेले के शुभारंभ अवसर पर विश्वविद्यालय के प्रशासनिक अधिकारी, सभी महाविद्यालयों के अधिष्ठाता, निदेशक, प्रबंधन मंडल के विभिन्न सदस्य, विभागाध्यक्ष सहित सभी कृषि विज्ञान केंद्रों के इंचार्ज, देश व प्रदेश के किसानों ने ऑनलाइन व ऑफलाइन रूप से शामिल होकर मेले की शोभा बढ़ाई।