बाजरे व तिलहन फसलों की अनुसंधान योजनाओं बारे समीक्षा बैठक में दिए निर्देश
हिसार,
देशभर में किसानों की आवश्यकतानुसार बाजरे की आधुनिक, उच्च गुणवत्ता व रोग प्रतिरोधी किस्मों को विकसित किया जाना चाहिए। इसके लिए किसानों के साथ मिलकर और क्षेत्र की जरूरत अनुसार काम करना होगा।
यह बात हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार के कुलपति प्रो. बीआर कम्बोज ने कही। वे बाजरे व तिलहन फसलों की अनुसंधान योजनाओं (खरीफ 2020) व तकनीकी कार्यक्रम (2021) बारे आयोजित समीक्षा बैठक में वैज्ञानिकों को निर्देश दे रहे थे। उन्होंने कहा कि बाजरा उगाने वाले क्षेत्रों में एक सर्वे कराया जाना चाहिए जिससे विभिन्न प्रदेशों जैसे राजस्थान, गुजरात आदि में बाजरे की हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित किस्में किन-किन क्षेत्रों में बोई जाती हैं इसका पता चल सके। इसी सर्वे के आधार पर वैज्ञानिक और अधिक गुणवत्ता वाली किस्मों को विकसित करने पर जोर दें और उसी अनुसार बीज की उपलब्धता बनाए रखें। उन्होंने वैज्ञानिकों से आह्वान किया कि वे विश्वविद्यालय द्वारा विकसित किस्मों को उनकी गुणवत्ता के आधार पर कृषि विज्ञान केंद्रों व अनुसंधान केंद्रों के माध्यम से किसानों तक पहुंचाएं। उन्होंने कहा कि वर्तमान में बाजरे की विकसित किस्में ज्यादातर शुष्क क्षेत्रों में ही बोई जाती हैं। उन्होंने सूक्ष्म सिंचाई विधि को अधिक से अधिक बढ़ावा देने पर जोर दिया। साथ ही वैज्ञानिकों से किसानों के लिए समयानुसार बाजरा व तिलहन फसलों के लिए सलाह जारी की जानी चाहिए ताकि किसान को बिजाई से लेकर कटाई तक की सही जानकारी मिल सके।
बाजरा की एचएचबी 311 किस्म विभिन्न राज्यों के लिए जारी
विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक डॉ. एसके सहरावत ने ऑनलाइन माध्यम से आयोजित समीक्षा बैठक के सभी प्रतिभागियों का स्वागत किया और विश्वविद्यालय में चल रहे विभिन्न अनुसंधान कार्यों की विस्तृत जानकारी दी। बाजरा अनुभाग के अध्यक्ष डॉ. एसके पाहुजा ने बाजरा क्षेत्र और तिलहन अनुभाग के अध्यक्ष डॉ. रामअवतार ने तिलहन अनुसंधान क्षेत्र में चल रहे मौजूदा विभिन्न प्रोजेक्ट के बारे में विस्तारपूर्वक बताया और भविष्य की कार्ययोजना को लेकर चर्चा की। डॉ. एसके पाहुजा ने बताया कि विश्वविद्यालय ने बाजरा की बायोफोर्टिफाइड हाइब्रिड एचएचबी 311 किस्म राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, महाराष्ट्र और तमिलनाडू के लिए जारी की है, जिसका औसत उत्पादन 37.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है और यह किस्म 75 से 80 दिनों में पक जाती है। बैठक में विभिन्न विभागों के विभागाध्यक्ष और वैज्ञानिक मौजूद रहे जिन्होंने शोध के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करते हुए भविष्य के लिए बहुमूल्य सुझाव दिए।