आजकल अखबार में हर रोज़ हरियाणा में सत्ताधारी नेताओं को काले झंडे दिखाने और विरोध करने के समाचार ही मुख्य समाचार होते हैं। इधर हिसार में भाजपा अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ को काले झंडे दिखाये गये तो सिरसा में डिप्टी स्पीकर रणबीर गंगवा को न केवल काले झंडे दिखाने बल्कि गाड़ी के शीशे भी तोड़ दिये गये। शुक्र है सभी सवार सकुशल रहे। सिरसा की सांसद सुनीता दुग्गल को भी अपनी गाड़ी छोड़कर एडीएम की गाड़ी में निकलना पड़ा। फतेहाबाद में मंत्री बनवारी लाल को भी विरोध का सामना करना पड़ा तो झज्झर में विरोध को देखते भाजपा अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ पहुंच ही न पाये।
इन सबके पीछे किसान आंदोलन मुख्य वजह बतायी जा रही है। वैसे मुख्यमंत्री व उप-मुख्यमंत्री को भी हेलीकाप्टर से लौटना पड़ा अनेक आयोजनों से। तभी सोशल मीडिया पर यह चुटकी ली गयी कि जब हेलीकाप्टर उतरना ही नहीं तो फिर इतना महंगा तेल क्यों जलाओ जी? यह अलग बात है कि नेताओं का काम है जनता के बीच जाना और विरोध सहकर भी जाना। अब फिर चाहे किसी का तेल जले या जी यानी दिल। कभी यही नेता लोगों के चहेते थे, आंखों के तारे थे और लोग इनकी एक झलक पाने को तरसते थे लेकिन किसान आंदोलन ने हालात और दृश्य बदल दिये। अब काले झंडे और गुस्सा स्वागत् करते हैं। ये नेता भी अपने कार्यक्रम कुछ समय के लिए स्थगित नहीं कर रहे। या फिर कम से कम अपने आक़ा यानी प्रधानमंत्री को ही आग्रह करें कि किसानों से बातचीत के द्वार खोलें ताकि मामला हल हो सके। इस तरह एकतरफा कार्रवाई लोकतंत्र के लिए और इसी सेहत के लिए ठीक नहीं। नहीं तो नेताओं को इसी तरह किसानों के गुस्से का शिकार होना पड़ेगा और ये काले झंडे दिखाये जाते रहेंगे। यह पुलिस कार्यवाही कोई हल नहीं। कुछ समय कुछ लोगों को हिरासत में लेकर धरने के दबाब में छोड़ देने से क्या कुछ हासिल किया जा सकता है? इन नेताओं को सही और असली तस्वीर प्रधानमंत्री को दिखाने का साहस करना चाहिए। राजहठ से कुछ मिलने वाला नहीं। आखिर बड़े बड़े मसले हर बार बातचीत से ही हल हुए हैं। सिर्फ मान/सम्मान ही तो देना है किसानों को। इतना तो कर लीजिए साहब …
-कमलेश भारतीय
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