हरियाणा हिसार

हिसार के वैज्ञानिकों की मेहनत रंग लाई, एम्ब्र्यो ट्रांसफर टेक्नोलॉजी में मिले सकारात्मक परिणाम

पांच गायें बन चुकी इस प्रक्रिया से मां, चार बछड़ियां व एक बछड़ा पैदा हुआ

एक गाय के अंडों से एक वर्ष में ही तैयार कर सकते 10-15 बच्चे

किसानों के खेतों व गौशालाओं तक ले जाया जाएगा प्रोजेक्ट, देशी गायों की नस्ल में होगा सुधार

हिसार, (राजेश्वर बैनीवाल)।
लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय में वैज्ञानिकों द्वारा किये जा रहे एम्ब्र्यो ट्रांसफर टेक्नोलॉजी में किए जा रहे कार्य के सकारात्मक परिणाम मिले हैं। इसके बाद विश्वविद्यालय ने इस तकनीक को किसानों एवं गौशाला तक ले जाने का निर्णय लिया है।
विश्वविद्यालय के कुलपति डा. विनोद कुमार वर्मा ने पत्रकारों से बातचीत में बताया कि विश्वविद्यालय द्वारा पिछले तीन—चार वर्षों से अनुसंधान निदेशक डॉ. प्रवीन गोयल की अध्यक्षता में एम्ब्र्यो ट्रांसफर टेक्नोलॉजी पर काम किया जा रहा था। इसके तहत पिछलें वर्ष विश्वविद्यालय ने विभिन्न गौशालाओं से 48 गायों को सेलेक्ट करके इस कार्य के लिए चुना तथा उनमें से पांच गाय इस प्रक्रिया से मां बन चुकी हैं। इनमें 4 बछड़ियां एवं एक बछड़ा है। इसके अतिरिक्त 5 गाय और गर्भित हैं जिनसे शीघ्र ही बच्चे प्राप्त होने की उम्मीद है। कुलपति के अनुसार इस प्रोजेक्ट का मुख्य उद्देश्य यह है कि प्रदेश में देसी गायों की नस्ल में सुधार किया जाए ताकि उनकी दूध उत्पादन क्षमता बढ़े जिससे किसानों की आमदनी बढ़ें। इसके अलावा हमारी गौशालाओं को भी दूध देने वाली अच्छी गायें मिल सकेंगी। उन्होंने बताया कि इस टेक्नोलॉजी के माध्यम से हम एक गाय के अंडों से एक वर्ष में ही 10-15 बच्चे भी तैयार कर सकते है।
कुलपति ने बताया कि वर्तमान में हरियाणा की गौशालाओं में दूध देने वाली गायों की संख्या काफी कम है जिससे कि उन्हें आर्थिक रूप से सरकार पर या अन्य दानियों पर निर्भर रहना पड़ता है। यदि विश्वविद्यालय के सहयोग से हम गौशालाओं में जर्मप्लाज्म में उन्नति करके उनके दूध देने वाले पशुओं की संख्या बढ़ा सकें व दूध की मात्रा बढ़ा सके तो गौशालायें आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो सकती हैं। कुलपति ने बताया कि इस टेक्नोलॉजी के प्रयोग से हम आवारा पशु/कम गुणवत्ता वाली गायों को सेरोगेट मदर के रूप में प्रयोग करते है जिससे आवारा पशुओं की समस्याओं से काफी हद तक प्रदेश को छुटकारा दिलवाया जा सकता है। उनमें तैयार एम्ब्र्यों को ट्रांसप्लांट करके उन्हें गर्भित किया जा सकता है और उनसे अच्छी नस्ल की बछड़ी ली जा सकती है जो बाद में अधिक दूध देगी।
कुलपति ने बताया कि हिसार स्थित लुवास देश का पहला ऐसा संस्थान है जो इस टेक्नोलॉजी को गौशालाओं में, आवारा पशुओं पर तथा किसानों के खेतों में लागू करने जा रहा है। यदि हम इसमें पूर्णत: सफल रहे तो पूरे राज्य का जर्मप्लाज्म बहुत जल्दी सुधार सकते है तथा राज्य को आवारा पशुओं की समस्या से छुटकारा मिल सकता है।
अनुसंधान निदेशक डॉ. प्रवीन गोयल ने बताया कि पूरे भारत में लगभग 22 जगहों पर यह कार्यक्रम चलाया जा रहा है। यह भारत सरकार का कार्यक्रम है और 7 जगह ऐसी हैं जहां यह प्रोजेक्ट अभी सुचारू रूप से चल रहा है। इस कार्यक्रम में कुछ गुणवत्ता वाली गायों का चयन अंडाणु संग्रहण के लिए किया जाता है जिससे आगे उच्च गुणवत्ता के भ्रूण बनाए जाते हैं और इस माध्यम से हम प्रदेश के जेनेटिक मटेरियल में सुधार कर सकते हैं।
पत्रकार वार्ता में विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. विनोद कुमार वर्मा के अलावा अनुसंधान निदेशक डॉ. प्रवीन गोयल, वेटरनरी गायनेकोलॉजी के डॉ. आनंद कुमार पाण्डेय, वेटरनरी पब्लिक हेल्थ के विभागाध्यक्ष डॉ. नरेश जिंदल एवं वेटरनरी पैथोलॉजी के विभागाध्यक्ष डॉ. गुलशन नारंग भी उपस्थित थे।

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