नशा एक नासूर
नशा एक नासूर है, छोड़ो सारे भाई।
क्यों इसके चंगुल में फंसकर ज़िंदगी गंवाई।।
यह जीवन अनमोल है, नशे में मत गंवाओ।
क्यों अपने जीवन को तुम, नरक समान बनाओ।।
अमल तम्बाकू, भांग मद्य का, कर देना परित्याग।
वरना पड़ेगा झेलना, तुझे दोजख सा संताप।।
अखाद्य पदार्थों को क्यों इंसान खाए।
कुदरत ने तुम्हारे लिए, कितने मेवा बनाए।।
नशा एक धीमा ज़हर है, करता नष्ट शरीर।
परिवार भी झेलता, परिणाम गम्भीर।।
नशा नाश का कारण है, मत करना मनुहार।
पैसे की हो बर्बादी, सबकी मिले दुत्कार।।
तन मन धोना संयम रखना, बुरी संगत से दूरी।
मुग्धा सेती यूं टल चालो, ज्यूं खड़के पासी धनूरी।।
नशा करना और करवाना, ये धर्म नहीं है तेरा।
चेत सके तो चेत प्राणिया, जागे तभी सवेरा।।
—एडवोकेट बनवारीलाल बिश्नोई,
पूर्व निदेशक अभियोजन विभाग हरियाणा