धर्म

परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—40

बिल्लू नाम का एक गरीब मछुआरा था, उसकी कोई औलाद नहीं थी और कुछ साल पहले उसकी पत्नी की मुत्यु हो गई थी। उसकी झोंपड़ी से कुछ दूरी पर एक नदी थी। जहां से वो मछली पकड़कर अपना गुजारा करता था । अब बिल्लू बूढ़ा हो गया था। परन्तु अब उससे दो वक्त की रोटी का इंतजाम बड़ी मुश्किल से होता था। एक दिन वो नदी में मछली पकड़ने के लिए जा रहा था, तभी अचानक उसके पैरों में एक बड़ा—सा सोने के पंखों वाला पक्षी आ गिरा यो बुरी तरह घायल था। उसके शरीर से खून निकल रहा था।
बिल्लू से उस पक्षी की यह हालत देखी नहीं गई । उसने पक्षी को अपने घर पर लाकर उसकी मलहम पट्टी की। पक्षी ने बिल्लू का धन्यवाद किया। पक्षी ने बिल्लू से कहा के तुम्हारा घर और तुम्हारे बुढ़ापे को देखते हुए लगता है कि तुम खाना बड़ी मुश्किल से जुटा पाते हो। परन्तु तुम चिंता मत करो मैं तुम्हारे लिए हर रोज भोजन का प्रबंध करूंगा। मैं हर ऱोज नदी से तुम्हारे लिए मछली लेकर आऊंगा,यह कहकर पक्षी वहां से चला गया।

अगली सुबह से वो सोने के पंखों वाला पक्षी बिल्लू के लिए हर रोज नदी से एक मछली लेकर आता। इससे बिल्लू के लिए भोजन का प्रबंध आसानी से हो जाता था। उसे अब मछली पकड़ने नदी में नहीं जाना पड़ता था। एक दिन बिल्लू के मन में लालच आया उसका ध्यान उस पक्षी के सोने के पंखों पर गया। उसने सोचा क्यों ना इस पक्षी को मार कर इसके सोने के पंखों को लूटा जाए। मैं उन सोने के पंखों को बेचकर अपने लिए एक अच्छा—सा घर बनाऊंगा और अपनी जिन्दगी सुखी से जी पाउंगा। इसी लालच के साथ उसने पक्षी को मारने को योजना बनाई। अगले दिन बिल्लू एक पेड़ के पीछे छुपकर बैठ गया और पक्षी के आने का इंतज़ार करने लगा।

जैसे ही वो पक्षी बिल्लू को मछली देने के लिए नीचे उतरा उसने एक बड़े से चाक़ू से उस पर हमला कर दिया और पक्षी वहीँ मर गया। देखते ही देखते पक्षी वहीं राख का ढ़ेर बन गया। और वहां एक साधू प्रगट हुआ यो अब श्राप से मुक्त हो चूका था । उसे श्राप मिल था कि वो एक पक्षी के रूप में दुखी लोगों की सेवा करेगा और वो श्राप से तभी मुक्त होगा, जब कोई लालची इंसान लालच में आकर उसकी हत्या कर दे। इसके बाद में तुम अपने असली रूप में आ जायोगे और तुम्हरा श्राप मारने वाले को लग जायेगा। इसके बाद लालची बिल्लू एक बड़ा पक्षी बन गया और किसी दुसरे लालची इन्सान की तलाश में निकल पड़ा। प्रेमी सुंदरसाथ जी,ये श्राप हम सभी पर चल रहा है। हम लोभ—लालच के श्राप को जीवनभर स्वयं भुगते है और धीरे—धीरे अपनी संतानों को इसे विरासत के रुप में दिए जा रहे है।

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