धर्म

परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—43

जो जीव परमात्मा से विमुख हो, उसमें आस्था न रखता हो, जो नास्तिक हो उसका संग छोड़ देना चाहिए। जो शराबी है , जुआरी है, व्याभिचारी है, उसके संग मत करो, क्योंकि काजल की कोठरी में जानेवाले के वस्त्रों पर कोई न कोई दाग लग ही जाता है, चाहे जितना भी सवाधान रहे ,बचना बड़ा मुश्किल है। शकुनि के साथ युधिष्ठिर नित्य प्रति जुआ खेलने लगे। एक दिन जुआ खेलते समय धन सम्पत्ति सब दाव पर लगा दिया, यहां तक कि द्रौपदी को भी जूए में दाव लगा दिया और हार गए।

जैसे किसी भी भाषा को सीखने के लिए सर्वप्रथम उसकी वर्णमाला सिखाई जाती है, जैसे हिन्दी भाषा में क ख ग आदि ऐसे अंगे्रजी में भाषा जानने के लिए , इसी प्रकार जुआ खेलने का प्रथम चरण है- ताश। जिसने खेले ताश, उसकी बुद्धि का हुआ नाश।

कई कहते है, महाराजजी टाइम पास करने के लिए कभी कभी ताश खेल लेते हैं। मुझे आश्चर्य होता है कि कितना अमूल्य समय है, उसको ताश खेलने में बिताया जा रहा है, इससे बड़ा पागलपन और मूर्खता क्या हो सकती है? यदि किसी को हम कहते हैं कि भाई भागवत सुना करो सत्संग में आया करो, तो जवाब मिलता है, महाराजजी आने को मन तो करता है लेकिन आने को टाइम ही नहीं मिलता। मानव भविष्य के लिए ऐसा हो, सोचकर चिन्ता मेें डूबा रहता है।

आदमी सात पीढिय़ों की सुख सुविधा के बारे में सोचकर कमाता रहता है, जोड़ता रहता है। वह नहीं सोचता कि आदमी चाहे लखपति हो या करोड़पति, खाने के लिए केवल दो रोटी ही तो चाहिए, परन्तु लालसा, तृष्णा, और मोहरूपी बेडिय़ा इतनी सशक्त होती है, जिनसे पीछा छुड़ाना बड़ा ही दुष्कर कार्य है। जब दु:ख आता है, संकट आता है तो रोते हुए परमात्मा के दरबार में जाते हो और प्रार्थना करते हो, भगवान् हमारी सहायता किजिए। भगवान् तो कृपा के सागर है वे तो स्वयं कहते हैं, मैं दुखियों के साथ हूं और जीव सुख चाहता हैं कैसे मिलन हो?

मानव को सुख में परमात्मा की याद भी नहीं आती तो परमात्मा को उसकी याद कैसे आ सकती है? दुनियावी धन्धों में मानव इतना रत रहता है कि परमात्मा को बिलकुल भूल जाता है। शराब के नशे में मदमस्त बना जीव अपने जीवन को व्यर्थ गवाँ देता है।

इस प्रकार नशा करने वालो। यदि नशा ही करना है तो परमात्मा के प्रेम का नशा करो , भक्ति का नशा करो, संकीर्तन के नशे में डूबे जाओ।
जिस प्रेमी भक्त आत्मा ने परमात्मा के प्रेम का नशा किया है उसका लोक और परलोक दोनों सुधर गए। यही नशा भक्त धु्रव ने किया, प्रहलाद ने किया, सूरदास ने किया, तुलसी दास , राधा, मीरा आदि सब ने इस नशे में अपनी जिन्दगी गुजारी, जिनका अनुकरण आज भी मानव को आनन्द प्रदान कर रहा है।

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