धर्म

स्वामी राजदास : पकड़ छोड़कर तो देखो

एक अंधेरी रात में एक पहाड़ के कगार से एक व्यक्ति गिर गया। अंधेरा था भंयकर। नीचे खाई थी बड़ी। जड़ों को पकडक़र किसी वृक्ष की लटका रहा। चिल्लाया, चीखा, रोया। घना था अंधकार। दूर—दूर तक कोई भी न था, निर्जन था। सर्द थी रात, कोई उपाय नहीं सूझता था। जड़ें हाथ से छूटती मालूम पड़ती थीं। हाथ ठंडे होने लगे, बर्फीले होने लगे। रात के गहराने लगी। वह आदमी चिखता है, चिल्लाता है, पकड़े है सारी ताकत लगा रहा है। ठीक उसकी हालात वैसी थी जैसी हमारी है। पकड़े हैं, जोर से पकड़े हुए हैं कि छूट न जाए कुछ। और उसको तो खतरा निश्चित ही भारी था। हमें मौत का पता भी न हो, उसको तो नीचे सामने मौत थी, ये हाथ छूटे जड़ो से कि उसके प्राण निश्चित समाप्त हुए।
नौकरी करना चाहते है, तो यहां क्लिक करे।
लेकिन कब तक पकड़े रहता। आखिर पकड़ भी तो थक जाती है। और तजा यह है कि जितने जोर से पकड़ो, उतने जल्दी थक जाते हैं। जोर से पकड़ा था, अंगुलियों ने जवाब देना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे आंखों के सामने ही हाथ खिसकने लगे, जड़े हाथ से छूटने लगीं। चिल्लाया, रोया, लेकिन कोई उपाय न था। आखिर हाथ से जड़े छूट गयीं।
लेकिन तब उस घाटी में हंसी की आवाज गूंज उठी। क्योंकि नीचे कोई गढ्ढ़ा न था, जमीन थी। अंधेरे में दिखायी नहीं पड़ता थी। वह नाहक ही पेरशान हो रहे थे इतनी देर तक। नीचे जमीन थी, कोई गड्डा न था, और इतनी देर जो कष्ट उन्होंने उठाया वह पकड़ के कारण ही उठाया, वहां कोई गड्डा था ही नहीं। वह घाटी जो चीख- पुकार से गूंज रही थी, हंसी की आवाज से गूंज उठी। वह आदमी अपने पर हंसा था।
धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, जिन लोगों ने भी यह पकड़ के पागलपन के छोडक़र देखा हैं। क्योंकि जिससे वह भयभीत हो रहे थे, वह है ही नहीं। जिस मृत्यु से हम भयभीत हो रहें हैं, वह हमारी पकड़ के कारण ही प्रतीत होती है। पकड़ छूटते ही वह नहीं है। जिस दुख से हम भयभीत हो रहे हैं, वह दुख हमारी पकड़ का हिस्सा है, पकड़ से पैदा होता है। पकड़ छूटते ही खे जाता है। और जिस अंधेरे में हम पता नहीं लगा पा रहे है कि कहां खड़े होंगे, वहीं हमारी अंतरत्मा है। सब पकड़ छूटती है, हम अपने में प्रतिष्ठित हो जाते है।
जीवन आधार बिजनेस सुपर धमाका…बिना लागत के 15 लाख 82 हजार रुपए का बिजनेस करने का मौका….जानने के लिए यहां क्लिक करे

Related posts

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—266

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से-215

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—299

Jeewan Aadhar Editor Desk