धर्म

ओशो : दमन अनिवार्य है

अभी-अभी अमेरिका में एक मनसिद् की मृत्यु हुई। विल्हम रेक उसका नाम है। इस सदी में जिन लोगों ने बहुत महत्वपूर्ण काम किया है मनुष्य के ऊपर, उनमें से एक आदमी था। जो भी महत्वपूर्ण काम करते हैं, वे मुसीबत में पड़ते हैं। विल्हम रेक जेलखाने में मरा। क्योंकि आदमी कुछ ऐसा अजीब है कि उसके लिए अगर कोई भी महत्वपूर्ण काम किया जाए, तो वह ठीक से बदला लेगा।
बदला लेने का कारण होता है। क्योंकि अगर ठीक से आदमी पर काम हो, तो उसकी जड़, मानी हुई मान्यताओं में से बहुत-सी मान्यताएं गलत सिद्ध होती हैं। गलत सिद्ध होते ही आदमी को तकलीफ शुरू हो जाती है। आदमी मानने को तैयार नहीं कि उसकी मान्यता गलत है। और मजा यह है कि अपनी मान्यताओं के कारण वह सब तरह के दुख में पड़ा है। पूछने जाता है कि मेरा दुख कैसे मिटे? लेकिन अगर उससे कहो कि तुम्हारी मान्ताएं ही तुम्हें दुख दे रही हैं, तुम्ही अपने दुख के निर्माता हो, तो मान्यताओं को बदलने को तैयार नहीं है।
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आदमी ऐसा है कि खुद ही अपना कारागृह बनाकर, उसमें ताला लगाकर, चाबी को फेंक देता है बाहर। और फिर चिल्लाता है कि मैं बहुत दुख में हूं, बहुत बंधन में पड़ा हूं, मुझे छुड़ाओ। और अगर कोई आदमी यह कहे कि यह तेरी ही मूढ़ता का फल है, तो क्रोध आता है।
विल्हम रेक ने बहुत-सी बातें आदमी के संबंध में कीमती कहीं। उसने कहा कि आदमी के शरीर में आदमी की दबायी गयी सभी वासनाएं संग्रहीत हो जाती है। शरीर में, मन में नहीं। दबायी गयी सभी वासनाएं शरीर में संग्रहीत हो जाती है और ये वासनाएं शरीर में संग्रहीत होकर शरीर को अशुद्ध कर देती है,रूग्ण कर देती है, विकृत कर देती है।
योग इस बात को बहुत पहले से जानता है। जैसे मेरा अपना अनुभव यह है कि अगर आप अपने क्रोध को दबा लें, तो आप बहुत हैरान हो जाएंगे कि आपके दांतों में आपका क्रोध संग्रहीत हो जाएगा। उसके कारण हें। इसलिए क्रोध जब होता है, तो आदमी दंात पीसने लगता है। क्रोध जब होता है, तो मुठ्यिां बांध लेता है। क्रोध में आदमी इतनी जोर से मुठ्ठियां बांध सकता है कि अपने ही नाखून अपनी ही मांस में चुभ जाएं। अगर अपने क्रोध को दबा ले, तो तो आपकी उंगलियोंं में और आपके दांतों में क्रोध संग्रहीत हो जाएगा। विल्हम रेक तो इस नतीजे पर पहुंचा कि क्रोधी आदमियों के दांत जल्दी गिर जाते हैं। हजारों प्रयोंगों से इस नतीजे पर पुहंचा। और विल्हम रेक ने हजारों क्रोधियों के दातों को दबाकर उनके क्रोध को जगाने का अनूठा प्रयोग किया है। जब क्रोधी अगर उसके पास आएगा तो वह सारा अध्ययन करके उसको लिटा देगा। और कुछ नहीं करेगा, चारों तरफ से उसके मसूढ़ों को दबाएगा। और उसके मसूढ़ो को दबाने से वह आदमी इतने क्रोध में आ जाएगा- अभी क्रोध का कोई कारण नहीं था- कि अनेक बार विल्हम रेक को पुलिस को बुलाकर अपने मरीजों से खुद को बचाना पड़ा। फिर तो बाद में उसे अपने साथ बॉडी-गार्ड को रखना पड़ता था, क्योंकि कभी भी कोई मरीज उस पर हमला कर देगा। उसके दबाए क्रोध को छूना, उसको उकसाना खतरनाक है।
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जानवर और आदमी के बीच का फासला कितना ही हो, बहुत फासला नहीं है। तो जानवर अपना सारा क्रोध दांतो से प्रगट करते हैं। वही उनके पास- या नाखून,या दांत, ये दो चीजें उनकी हिंसा के साधन है। आदमी ने हिंसा के बहुत साधन विकसित कर लिये है। और जो खोज करते हैं वे कहते हैं, इसलिए विकसित कर लिये कि आदमी के दांत और नाखून जानवरों से बहुत कमजोर है, इसलिए सबस्टियूट की जरूरत पडऩा जरूरी हो गयी। तो हमारे खंजर, हमारी तलवारें, हमारी छुरियां-ये हमारे दांतों का विस्तार हैं। हमारे नाखून का विस्तार है। दूसरे जानवर हमसे मजबूत थे। हमें कुछ खोजना पड़ा जिससे हम उनसे ज्यादा मजबूत दांत और नाखून बना लें। उससे हम जीते भी। लेकिन एक मजेदार घटना घट गयी कि जब आप छूरी से किसी को मारते है तो आपके नाखूनों का जो हिसा उठ गयी थी, वह छूरी से नहीं निकलती। वह आपके नाखूनों में ही रह जाती है। नाखून से छूरी तक हिंसा को जाने के लिए कोई पैसेज नहीं है। अगर आप किसी आदमी को गाली देते हैं और बड़बड़ाते है और दांत पीसते हैं तो बिना काटे आपके दांतों में ऊर्जा आ जाती है, वह निकलती नहीं।
तो दांत में हिंसा इकठ्ठी हो जाती है। हिंसक आदमी सिगरेट पीने में रस पाएगा। दातों का उपयोग होता है। हिंसक आदमी कुछ ज्यादा बातचीत करने में रस पाएगा। दातों का उपयोग होता है। हिंसक आदमी कुछ नहीं मिलगा तो गाद को मुंह में डालकर चबाता रहेगा, पान को मूंह में डालकर चबाता रहेगा, यह सब हिंसक आदमी के लक्षण है। दांत चलाना। एक लिहाज से अच्छा भी है ,आप दूसरे को नहीं काटते, कम-से- कम पान चबाते है। अङ्क्षहसक उपाय है हिंसा को निकालने का।
लेकिन यह मैंने उदाहरण के लिए कहा। हमारे शरीर की सारी वासनाएं जिनको हम दबा लेते हैं- और आदमी दबा रहा हैं, बूरी तरह दबा रहा है- आदमी कुछ भी नहीं निकालता, हमारी सारी सभ्यताएं और सारी संस्कृतियां और सरे धर्म दमन खड़े हैं। दबाओ सब। उसको दबा कर रोक लो। लेकिन वह दबेगा तो भीतर भर जाएगा और शरीर अशुद्ध हो जाएगा। शरीर का बुद्धि का स्न्नान से ज्यादा गहरा परिणाम आपके शरीर के भीतर जो दबा है, उसे निकालने से होगा।
हम जो प्रयोग कर रहे हैं ध्यान का, वह इससे जुड़ा है। उसमें आपके भीतर जो दबा है-क्रोध है, हिंसा है, दुख है, सुख है, रोना है, हंसना है, पागलपन है, सब दबा है-उसे फेंक देना है, उसे निकाल देना है। और ध्यान रहे, जब आप किसी पर निकालते है, तो आप एक चक्कर में पड़ रहें है जिससे छूटाकरा नहीं होगा। उसे शून्य में निकाल देना है। जो आदमी क्रोध को शून्य में निकलने में समर्थ हो गया- किसी पर नहीं- क्योंकि जब आप किसी पर निकालेंगे, तो फिर क्रोध की शृखंला का कोई अंत नहीं है। मैंने आपको गाली दी, फिर आपने मुझे गाली दी, फिर मैं आपको गाली दूंगा। और इसका कोई अंत नहीं है। और हर बार, हर बार क्रोध का यह प्रयोग करना अभ्यास भ्ी बनेगा। तो क्रोध तो निकलेगाख् लेकिन अभ्यास भी निर्मित होगा। और तब एक दुष्ट चक्र है, जिसमें आदमी फंस जाता है।
जहां दूसरों के साथ जीन है वहां बहुत बार बहुत सी बातें दबा लेनी पड़ेगी। इसलिए दमन समाज के साथ अनिवार्य है। और शायद ही हम कभी कोई ऐसा समाज बना पाएं जो, पूरे दमन से छूटकारा करवा दे। अच्छा समाज कम-से -कम दबाएगा, बहुत बुरा समाज ज्यादा-से ज्यादा दबाएगा, लेकिन अच्छे से अच्छे समाज में जीने के लिए दमन अनिवार्य है।
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