धर्म

परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—50

एक माँ ने अपने बच्चे को किसी बात पर पीट दिया। बच्चा कुछ मांग रहा था। जब वह नहीं माना तो माँ को गुस्सा आ गया। गुस्से में आग बबूला हो गई। आव देखा न ताव। फ्रिज खोला और उस नादान, मासूम बच्चे को फ्रिज में बंद कर दिया। घर के काम काज में सारा दिन व्यस्थ रही कि भूल गई कि मैंने बच्चे को फ्रिज में बन्द किया था। आदमी कोध्र के वशीभूत होकर न करने वाली हरकतें कर बैठता है और बाद में रोता है, पछताता है।

शाम को जब पाँच बजे पतिदेव घर आए तो चाय बनाकर मेज पर रखी। पति ने पूछा, आज मुन्ना कहाँ है, दिखाई नहीं दे रहा? कहीं गया है क्या या सो रहा हैं? सुनते ही उसे होश आया, याद आया कि ओ हो, मुन्ने को तो मैंने सुबह फ्रिज में बंद किया था। दौड़ी फ्रिज खोला तो बच्चा तो बर्फ की तरह जम गया था। अब रोने से क्या फायदा। फूल तो कुम्हला गया। बगिया अजड़ गई। छोटी सी नादानी के कारण बेटे से हाथ धोने पड़ गए।

इसीलिए प्रेमी सज्जनों मन को मारना नहीं समझना हैं, संयमित करना है और भक्ति मार्ग पर लगाना है। सन्मार्ग पर लगा मन हमारा मित्र है और यही मन कुमार्ग गामी बन जाए तो इससे बड़ा शत्रु हमारा कोई नहीं।

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