धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से— 686

एक बार एक युवक हार मानकर संत के पास पहुँचा। उसके चेहरे पर निराशा थी और आंखों में थकावट। वह बोला — “गुरुदेव! मैंने जीवन में बहुत प्रयास किए — पढ़ाई में, व्यापार में, रिश्तों में… लेकिन हर जगह असफल रहा। अब लगता है कि मैं जीवन की सबसे बड़ी हार झेल चुका हूँ।”

संत मुस्कुराए और बोले — “बेटा, क्या तुम जानते हो जीवन की सबसे बड़ी हार क्या होती है?”

युवक बोला — “शायद जब कोई अपने सारे प्रयासों में असफल हो जाए?”

संत ने सिर हिलाया, “नहीं बेटा, वह हार नहीं होती, वह तो अनुभव का मार्ग है। असली हार तब होती है जब मनुष्य प्रयास करना छोड़ देता है।”

फिर संत ने उसे एक कहानी सुनाई— “एक किसान था, जिसने पूरे साल अपनी जमीन में बीज बोए, पर बार-बार बारिश न होने से फसल सूख जाती। गाँव वाले उसका मज़ाक उड़ाते — ‘अब तो छोड़ दे, यह ज़मीन बंजर है।’

लेकिन किसान हर साल फिर कोशिश करता। उसने कहा — ‘मैं ज़मीन नहीं जो हार मान लूँ, मैं तो वह बीज हूँ जो फिर अंकुरित होगा।’

पाँचवें वर्ष जब बारिश ठीक हुई, वही ज़मीन सबसे हरी फसल से लहलहा उठी। लोग चकित थे, पर किसान बस मुस्कुरा रहा था — क्योंकि उसने समझ लिया था कि जो हार नहीं मानता, उसकी मेहनत कभी व्यर्थ नहीं जाती।”

संत बोले — “बेटा, जीवन में असफलता कोई हार नहीं होती। सबसे बड़ी हार तो तब होती है जब तुम अपने भीतर के विश्वास को खो देते हो। जिसने विश्वास बचा लिया, उसने जीत का रास्ता पा लिया।”

युवक की आंखों में चमक लौट आई। उसने संत के चरण छुए और कहा — “गुरुदेव, मैं फिर से प्रयास करूंगा। अब मुझे पता चल गया — हार वही है, जो हार मान ले।”

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, जीवन की सबसे बड़ी हार असफलता नहीं, बल्कि प्रयास छोड़ देना है। जो थककर भी चलते रहते हैं, वे अंततः सफलता को पा ही लेते हैं।

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