धर्म

सत्यार्थप्रकाश के अंश-01

माता-पिता,आचार्य अपने सन्तान और शिष्यों को सदा सत्य उपदेश करें और यह भी कहें कि जो-जो हमारे धर्मयूक्त कर्म हैं उन-उन का ग्रहण करो और जो-जो दुष्ट कर्म हों उनका त्याग कर दिया करो। जो-जो सतय जाने उन-उन का प्रकाश और प्रचार करे। किसी पाखण्डी दुष्टाचारी मनुष्य पर विश्वास न करें और जिस-जिस उत्तम कर्म के लिए माता-पिता और आचार्य आज्ञा देवें और उस-उस का येथेष्ट पालन करो। जैसे माता-पिता ने धर्म, विद्या अच्छे आचरण के श्लोक निघुण्टु निरूत्तक अष्टाध्यायी अथवा अन्य सूत्र वा वेदमन्त्र कण्ठस्थ कराये हों उन-उन का पुन: अर्थ विद्याथियों को विदित करावें। जैसे प्रथम समुल्लास में परमेश्वर का व्याख्यान किया है उसी प्रकार मान के उस की उपासना करें। जिस प्रकार अरोग्य , विद्या और बल प्राप्त हो उसी प्रकार भोजन छादन और व्यवहार करें करावें अर्थात् जितनी क्षुधा हो उस से कुछ न्यून भोजन करे। मद्य मांसादि के सेवन से अलग रहें। अज्ञात गम्भीर जल में प्रवेश न करें। क्योंकि जल जन्तु वा किसी अन्य पदार्थ से दु:ख और जो तरना न जाने तो डूब ही जा सकता है । नाविज्ञाते जलाशये यह मनु का वचन। अविज्ञात जलाशय में प्रविष्ट होके स्नानादि न करें।
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