जिन पुरूषों का मन विद्या के विलास में तत्पर रहता, सुन्दर शील स्वभाव युक्त, सत्यभाषणादि नियम पालनयुक्त और अभिमान अपवित्रता से रहित, अन्य की मलीनता के नाशक, सत्योपदेश, विद्यादान से संसारी जनों के दु:खों के दूर करने से सभुषित, वेदवहित कर्मो से पराये उपकार करने में रहते हैं , वे नर और नारी धन्य हैं। इसलिए आठ वर्ष के हों तभी लडक़ों को लडक़ो की और लड़कियों को लड़कियों की शाला भेज देंवे। जो अध्यापक पुरूष वा स्त्री दुष्टाचारी हों, उन से शिक्षा न दिलावें, किन्तु जो पूर्ण विद्यायुक्त धार्मिक हों वे ही पढ़ाने और शिक्षा देने योग्य हैं।जीवन आधार न्यूज पोर्टल के पत्रकार बनो और आकर्षक वेतन व अन्य सुविधा के हकदार बनो..ज्यादा जानकारी के लिए यहां क्लिक करे।
द्विज अपने घर में लडक़ों का यज्ञोपवीत और कन्याओं का भी यथायोग्य संस्कार करके यथोक्त आचाय्र्या कुल अर्थात् अपनी-अपनी पाठशाला में भेज दें।
विद्या पढऩे का स्थान एकान्त देश में होना चाहिये और वे लडक़े और लड़कियों की पाठशाला दो कोश एक दुसरे से दूर होनी चाहिए। जो वहां अध्यापिका और अध्यापक पुरूष वा भृत्य अनुचर हों वे कन्याओं की पाठशाला में सब स्त्री और पुरूषों की पाठशाला में पुरूष रहें। स्त्रियों की पाठशाला में पांच वर्ष का लडक़ा और पुरूषों की पाठशाला में पांच साल की लडक़ी भी ना जाने पावे। अर्थात् जब तक वे ब्रहा्रचारी वा ब्रहा्रचारिणी रहें तब तक स्त्री वा पुरूष कर दर्शन, स्र्पशन, एकान्तसेवन, भाषण, विषयकथा,परस्परक्रीडा,विषय का ध्यान और संगङइन इन आठ प्रकार के मैथुनों से अलग रहें तथा अध्यापक लोग उन को इन बातों से बचावें। जिस में उत्तम विद्या, शिक्षा, शील, स्वभाव, शरीर आत्मा के बलयुक्त होके आनन्द को नित्य बढ़ा सके।
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पाठशालाओं में से एक योजन अर्थात् चार कोश दूर ग्राम वा नगर रहे। सब को तुल्य वस्त्र, खान-पान, आसन दिये जायें, चाहें वह राजकुमार व राजकुमारी हो, चाहे दरिद्र के सन्तान हों, सब को तपस्वी होना चाहिए। उन के माता-पिता अपने सन्तानों से वा सन्तान अपने माता पिता से मिल न सकें और न किसी प्रकार का पत्र-व्यवहार एक दूसरे से कर सकें, जिस से संसारी ङ्क्षचता से रहित होकर केवल विद्या बढ़ाने की चिन्ता रखे। जब भ्रमण करने को जायें तक उनके साथ अध्यापक रहें,जिस से किसी प्रकार की कुचेष्ठा न कर सकें और न आलस्य प्रमाद करें। नौकरी की तलाश है..तो यहां क्लिक करे।
इसका अभिप्राय यह है कि इस में राजनियम और जतिनियम होना चाहिये कि पांचवें अथवा आठवें वर्ष से आगे अपने लडक़ों और लड़कियों को घर में न रखें। पाठशाला में अवश्य भेजें। जो न भेजे वह दण्डनीय हो। प्रथम लडक़ों का यज्ञोपवीत घर में ही हो और दूसरा पाठशाला में आचाय्र्यकुल में हो। पिता माता वा अध्यापक अपने लडक़ा लड़कियों को अर्थ सहित गायत्री मन्त्र का उपदेश दें।
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