जब लंका पर चढ़ाई का समय आया तो समुद्र को लांघने के लिए पुल बनाने की योजना बनाई गई। तय हुआ,पत्थरों को इकट्टा किया जाए। वानर सेना लग गई,सेवा कार्य शुरू हुआ। पानी पर सेतु बनाना है कैसे किया जाए? भगत हनुमान अन्यन भक्त थे,उन्होंने विचार रखा- प्रत्येक परत्थ पर, श्रीराम लिखकर पानी में छोड़ा जाए तो मुझे पूर्ण विश्वास है पत्थर,लकड़ी की तरह पानी की सतह पर तैंरने लगेंगे और इस तरह सेतु तैयार हो जायेगा और समुद्र पार करने में कोई कठिनाई नहीं होगी।
सर्वप्रथम हनुमानजी ने ही एक पत्थर पर श्रीराम की प्रतिमा का अंंकन किया, चरणों में श्रद्धा से प्रणाम किया और श्रीराम लिखा आरै दृढ़ विश्वास के साथ पानी में छोड़ दिया। पत्थर-लकड़ी की तरह पानी पर तैर गया। सभी को विश्वास हो गया और सभी ने कार्य प्रारम्भ कर दिया। हाथ कंगन को अरसी क्या? प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती। सांयकाल तक काफी सम्पन्न हुआ। बात श्रीराम जी के पास पहुंंची,मन में आया मैं भी पत्थर को डालकर देखूं कैसे तैरता है?
रात के अन्धेरे में अकेले चल पड़े। समुद्र के किनारे आए,इधर-उधर देखा,कोई मुझे देख तो नहीं रहा है? कोई दिखार्द नहीं दिया परन्तु हनुमानजी् एक वृक्ष की ओट में छिपकर सब देख रहे थे। श्रीरामजी ने एक पत्थर लिया और लिखा श्रीराम ज्योंहि पानी में छोड़ा त्योंहि नीचे डूब गया,ऊपर पानी की लहरें उठी और समाप्त हो गई।
प्रभु को बड़ा आश्चर्य हुआ और इधर उधर देखा कि किसी ने यह देखा तो नहीं? सोच ही रहे थे कि भक्त हनुमान् आये और चरणों में नतमस्तक होकर, करबद्ध खड़े हो गए। अपने प्रभु को चिन्तातुर देखकर ,थोड़े मुस्कुराए और कहने लगे प्रभो इसमें विचार करने की कोई बात नहीं है। जिस पत्थर को आपने छोड़ दिया वह भला कैसे तैर सकता है? आपसे अलग होकर कोई जीव भवसागर पार नहीं हो सकता।
आश्चर्य विनोद ें बदल गया। तब से यह सिद्ध हो गया कि श्रीकृष्ण ने गीता में अनेको स्थानों पर अर्जुन सम्बोधित करके कहा हे कौन्तेय मुझे जपनेवाला बिना किसी रूकावट के मेरे पास पहुंच जाता है। वह चाहे किसी भाव से मेरा सुमिरण करे,मुझे पुकारे तो मैं उसके पास अवश्य आता हूं।