राजस्थान में एक लडक़ी हुई है करमाबाई। उसके घर के सामने मन्दिर था। वह हर रोज मन्दिर जाती थी। भगवान् के दर्शन करती,पंडितजी से प्रसाद लेती। एक दिन पंडितजी को कहीं शहर जाना था तो सोचा पीछे से करमाबाई भवनान्जी की आरती पूजा करके भोग आदि लगा दे तो बात बन जाए। उसने करमाबाई से कहा, बेटी मैं दो दिन के लिए बाहर जा रहा हूँ। भगवान् की आरती करके भोग जरूर लगा देना।
पंडित कहकर चले गए। राजस्थान में शाम को प्राय: खिचड़ी बनाते हैं। करमाबाई ने कुछ खिचड़ी कटोरी में डाली और मन्दिर में आकर भगवान् की आरती की, वह कटोरी मन्दिर में भगवान के सामने रख दी और पर्दा डाल दिया और हाथ जोड़ कर विनती करने लगी, देखो भगवान। मैं भोग लगाने की विधि तो जानती नहीं, आप मुझ बालिका पर दया कीजिए और भोग लगाइये। पांच मिनट बाद पर्दा खोला, देख तो खिचड़ी वैसे के वैसे रखी थी। सोचा ठाकुरजी किसी काम में व्यस्थ होंगे, इसीलिए शायद आने में देर हो गई। दुबारा पर्दा लगाया और आंखे बंद करके खड़ी हो गई।
दो मिनट बाद पर्दा खोला, तो खिचड़ी फिर वैसे ही रखी थी। मन में सोचा, भगवान खिचड़ी क्यों नहीं खा रहें? ध्यान आया अरे मैंने इसमें घी तो डाला ही नहीं, इसलिए आज भगवान भोग नहीं लगा रहे हैं, घर गई, घी लेकर आई, खिचड़ी में डाला और पर्दा बन्द किया और कहा, भगवान् मैं घी डालना भूल गई थी, अब डाल दिया है, जल्दी से भोग लगाओ। थोड़ी देर बाद पर्दा खोला, तो देखा खिचड़ी तो नहीं खाई भगवान् ने। करमा को गुस्सा आ गया और कहने लगी, देखो भगवान्, मेरे भी एक छोटा भाई है, जब वह खाना नहीं खाता, तो मैं जोर से एक थप्पड़ लगाती हूँ और वह से खाना खा लेता है।
अब आप खाना खाते हो या थप्पड़ लगाऊँ? थप्पड़ उठाया कि भगवान प्रकट हो गए और खिचड़ी खाने लग गये। करमा बड़ी खुश हुई। जब देखा कि मुरली मनोहर खाते ही जा रहे है करमा ने कृष्ण का हाथ पकड़ लिया और कहा,कृष्ण सारी खिचड़ी तुम खा जाओगे तो मैं बाबा को प्रसाद कहाँ से दूंगी , अत: थोड़ा सा प्रसाद तो रहने दो।
दो दिन बाद पडिंतजी आए और पूछा बेटी आरती पूजन ठीक से किया? भोग समय पर लगाया? करमा ने कहा? बाबा सब ठीक हो गया। बस पहले दिन कैन्हया थोड़ी देर से आए, फिर मैंने ऐसा डराया कि भोग रखते ही कान्हा झटपट आ जाते थे।
बाबा को सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ और सोचने लगे-मैं भोग लगाते लगाते बूढ़ा हो गया, आज तक कभी दर्शन नहीं दिए कन्हैया ने और करमाबाई पर दो दिन में प्रसन्न हो गए।
प्रेमी सज्जनों भक्ति में भावना प्रधान होती है यदि शुद्ध मन से,निश्छल मन से भगवान् को पुकारोगे तो वे उसी क्षण भी आ सकते हैं, यदि स्वार्थवश उसे पुकारोगे तो वह उनके ऊपर निर्भर है कि परमात्मा कब आप पर कृपा करें।
जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।
भगवान् सर्वव्यापी है, लेकिन उनकी विद्यमानता का अनुभव वही कर सकता है जो श्रद्धा और विश्वास से उनके प्रति समर्पित भाव रखता है।