धर्म

ओशो : खोजने कहीं भी नहीं जाना

धर्म कोई मशाल नहीं। जिसे जलाये रखना पड़े, वह धर्म नहीं। जिसे हम सम्हाले , वह धर्म नहीं। जो हमें सम्हालता है ,वही धर्म है।
बिन बाती बिन तेल। न तो धर्म की कोई बाती है, न कोई तेल है, धर्म शुद्ध प्रकाश है। उसके लिये किसी ईधन की कोई जरूरत नहीं। धर्म का ही विस्तार है। धर्म साधे हुए है सारे अस्तित्व को। पंडित-पुरोहित धर्म को साधेगा? फिर वह धर्म धर्म जायेगा। हिन्दू धर्म को पंडित-पुरोहित समहाल कर रखता है। धर्म को नहीं। नौकरी की तलाश है..तो यहां क्लिक करे।
धर्म तो तब तुम्हें उपलब्ध होता है जब तुम अपने को सम्हाल लेते हो- बस तत्क्षण धर्म का दीया जल उठता है। धर्म का दीया तो जला ही हुआ था,सिर्फ तुम आंखे बंद किये थे। अपने को समहाल लेते हो, आंख खुल जाती है।
तुम चेतो। तुम्हारे चैतन्य होते ही, तुम चकित हो जाते हो, कि मैं जिसे खोज रहा था, वह मेरे भीतर सदा से मौजूद था, वह मेरे भीतर था।
धर्म तुम्हारा स्वभाव है। धर्म मशाल नहीं। मशाल में तो तेल भी डालना होगा। कभी बुझने लगे मशाल तो सम्हालना भी होगा। किन्ही हाथों की जरूरत पड़ेगी। धर्म तो वह है जो सब हाथों को सम्हाले हुए है। तुम श्वास धर्म के कारण ले रहे हो। तुम जी धर्म के कारण रहे हो। चांद-तारे धर्म के कारण चलते है। पृथ्वी सम्हली है धर्म के कारण। धर्म इस जगत को सम्हालेने वाले नियम का नाम है।
धर्म को पंडित-पुरोहित कैसे समहालेंगे। और अगर पंडित-पुरोहित धर्म को समहालेंगे, तो पंडित-पुरोहित को समहालेगा कौन? इसे एकबारी ठीक से समझ लो। पंडित पुरोहित जिसे समहालते हैं, वह धर्म नहीं है और धर्म नहीं हो सकता है। इसीलिए धर्म नहीं हो सकता है क्योंकि पंडित-पुरोहितों के द्वारा समहाला गया है।जीवन आधार प्रतियोगिता में भाग ले और जीते नकद उपहार
पंडित-पुरोहित खुद अंधे है। इन्हें रोशनी दिखी नहीं। जो इन्हें दिख नहीं, उसे ये सम्हालेंगे? हां शास्त्र को समहाल लेंगे। शास्त्र में थोड़े ही धर्म है। धर्म शून्य के अनुभव में है। शब्द में धर्म नहीं है। नि:शब्द में धर्म है। नि:शब्द का इन्हें कुछ पता नहीं है। धर्म मंदिर-मस्जिद में होता तो ये सम्हाल लेते। मगर धर्म मस्जिद मंदिर में नहीं हैं। धर्म बहुत विराट है। सब मंदिर-मस्जिद धर्म के भीतर है। धर्म किसी के भीतर नहीं है। जीवन आधार न्यूज पोर्टल के पत्रकार बनो और आकर्षक वेतन व अन्य सुविधा के हकदार बनो..ज्यादा जानकारी के लिए यहां क्लिक करे।

धर्म का अर्थ होता है:हमारे पहले जो या हमारे बाद भी होगा। हम आते है, हम जाते है-धर्म रहता है लकिन निश्चित ही वह धर्म न तो हिन्दू हो सकता है, न मुसलमालन हो सकता है, न ईसाई,न जैन, न बुद्ध। वह तो शुद्ध धर्म है। उस धर्म को, जब भी तुम जागकर आंख खोलते हो, तुम सदा अपने पास पाते हो,आपने प्राणो में पाते हो, अपनी श्वासों में , अपने हृदय की धडक़नों में । उसे खोजने कहीं भी नहीं जाना पड़ता।
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