धर्म

सत्यार्थप्रकाश के अंश—43

राज भोज के राज्य मे और समीप ऐसे-ऐसे शिल्पी लोग थे कि जिन्होंने घोड़े के आकार एक यान यन्त्रकलायुक्त बनाया था कि जो एक कच्ची घड़ी में गयारह कोश और एक घण्टे में साढ़े सत्ताईस कोश जाता था। वह भूमि और अन्तरिक्ष में भी चलता था। और दूसरा पंखा ऐसा बनाया था कि बिना मनुष्य के चलाये कलायन्त्र के बल से नित्य चला करता और पुष्पकल वायु देता था। जो ये दोनों पदार्थ आज तक बने रहते तो यूरोपियन अतने अभिमान में न चढ़ जाते। जीवन आधार पत्रिका यानि एक जगह सभी जानकारी..व्यक्तिगत विकास के साथ—साथ पारिवारिक सुरक्षा गारंटी और मासिक आमदनी और नौकरी भी..अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करे।

जब पोप जी अपने चेलों को जैनियों से रोकने लगे तो भी मन्दिरों में जाने से न रूक सके और जैनियों की कथा में भी लोग जाने लगे। जैनियों के पोप इन पुराणिायों के पोपों के चेलों को बहकाने लगे। तब पुराणियों ने विचारा कि इस का कोई उपाय करना चाहिये, नहीं तो अपने चेले जैनी हो जायेंगे। पश्चात् पोपों ने यही सम्मति की कि जैनियों के सदृश अपने भी अवतार,मन्दिर मूर्ति और कथा के पुस्तक बनावे। इन लोगों ने जैनियों के चौबीस तीर्थकरों के सदृश चौबीस अवतार,मन्दिर और मूर्तियां बनाई। और जैसे जैनियों के आदि और उत्तर- पुराणादि हैं वैसे अठारह पुराण बनाने लगे।
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राजा भोज के डेढ़ सौ वर्ष के पश्चात् वैष्णवमत का आरम्भ हुआ। एक शठकोप नामक कंजरवर्ण में उत्पन्न हुआ था, उस से थोड़ा सा चला। उस के पश्चात् मुनिवाहन भंगी-कुलोत्पन्न और तीसरा यावनचाय्र्य यवनकुलोत्पन्न आचाय्र्य हुआ। तत्पश्चात् ब्रह्मण कुलज चौथा रामानुज हुआ उस ने अपना मत फैलाया। शैवों ने शिवपुराणादि,शक्तों, ने देवीभागवतादि वैष्णवों ने विष्णुपुराणदि बनाये। उन में अपना नाम इसलिए नहीं धरा कि हमारे नाम से बनेंगे तो कोई प्रमाण न करेगा। इसलिये व्यास आदि ऋषि मुनियों के नाम धरके पुराण बनाये। नाम भी इन का वास्तव में नवीन रखना चाहिये था परन्तु जैसे कोई दरिद्र अपने बेटे का नाम महाराजाधिराज और आधुनिक पदार्थ का नाम सनातम रख दे तो क्या आश्चर्य हैं? अब इन के आपस के जैसे झगडे हैं, वैसे पुराणों में भी धरे हैं। नौकरी की तलाश है..तो जीवन आधार बिजनेस प्रबंधक बने और 3300 रुपए से लेकर 70 हजार 900 रुपए मासिक की नौकरी पाए..अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करे।
देखो देवीभागवत में श्री नामा एक देवी स्त्री जो श्रीपुर की स्वामिनी लिखी है, उसी ने सब जगत् को बनाया और ब्रह्मा,विष्णु,महादेव को भी उसी ने रचा। जब उस देवी की इच्छा हुई तब उसने अपना हाथ घिसा। उस के हाथ में एक छाला हुआ। उस में से ब्रह्म की उत्पत्ति हुई। उस से देवी ने कहा कि तू मुझ से विवाह करो। ब्रह्मा ने कहा कि तू मेरी माता है मैं तुझ से विवाह नहीं कर सकता। ऐसा सुन कर माता को क्रोध चढ़ा और लडक़े को भस्म कर दिया। और फिर हाथ घिस के उसी से दूसरा लडक़ा उत्पन्न किया। उस का नाम विष्णु रखा। उस ने भी उसी प्रकार कहा। उसने न माना तो उसे भी उसी प्रकार भस्म कर दिया। पुन: उसी प्रकार तीसरे लडक़े को उत्पन्न किया। उस का नाम महादेव रखा और उस से कहा कि मुझ से विवाह कर। महादेव बोला कि मैं तुझ से विवाह नहीं कर सकता। तू दूसरी स्त्री का शरीर धारण कर। वैसी ही देवी ने किया। तब महादेव बोला कि दो ठिकाने राख सी क्या पड़ा है? देवी ने कहा कि ये दोनों तेरे भाई है। इन्होंने मेरी आज्ञा नहीं मानी इसलिए भस्म कर दिये। महादेव ने कहा मैं अकेला क्या करूंगा, इन को जिला दे और दो स्त्री और उत्पन्न कर,तीनों का विवाह तीनों से होगा। वाह रे माता से विवाह न किया बहिन से कर लिया। क्या इस को उचित समझना चाहिये? पश्चात् इन्द्रादि को उत्पन्न किया। ब्रह्मा विष्णु, रूद्र, और इन्द्र को पालकी के उठाने वाले कहार बनाया, इत्यादि गपोड़े, लम्बे चौड़े मनमाने लिखे हैं। पत्रकारिकता के क्षेत्र में है तो जीवन आधार न्यूज पोर्टल के साथ जुड़े और 72 हजार रुपए से लेकर 3 लाख रुपए वार्षिक पैकेज के साथ अन्य बेहतरीन स्कीम का लाभ उठाए..अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करे।

कोई उन से पूछे कि उस देवी कि उस देवी का शरीर और श्रीपूर का बनाने वाला और देवी के पिता कौन थे? जो कहो कि देवी अनादि है तो जो संयोगजन्य वस्तु हैं वह अनादि कभी नहीं हो सकता। जो पुत्र माता से विवाह करने से डरे तो भाई बहिन के विवाह में कौन सी अच्छी बात निकलती है? जैसी इस देवीभागवत में महादेव, विष्णु, और ब्रह्मणादि की क्षदु्रता और देवी की बड़ाई लिखी है इसी प्रकार शिवपुराण में देवी आदि की बहुत क्षदु्रता लिखी है। अर्थात् ये सब महादेव के दास और महादेव सब का ईश्वर है। जो रूद्राक्ष अर्थात् एक वृक्ष के फल को गोठली औश्र राख धारण करने से मुक्ति मानते हैं तो राख में लोटनेहार गदहा आदि पशु और घुंघुंची आदि के धारण करने वाले भील कंजर आदि मुक्ति को जावें और सूअर,कुत्तें, गधे, आदि पशु राख में लोटने वालों की मुक्ति क्यों नहीं होती?
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Jeewan Aadhar Editor Desk