धर्म

ओशो : मन की अवस्थाएं

हेनरिख हेन ने कहा है कि मैं एक दफे जंगल में तीन दिन के लिए भटक गया और रास्ता न मिला। फिर पूर्णिमा का चांद निकला, तो मैं चकित हुआ। जिंदगी में मैंने बहुत-सी कविताएं लिखीं। चांद पर बहुत कविताएं लिखीं। तो सदा मैंने चांद में कभी अपने प्रयेसी का बिम्ब देखा,कभी परमात्मा की छवि देखी,और क्या-क्या नहीं देखा। मगर तीन दिनों की भूख के बाद जब चांद निकला,तो मैंने देखा:एक सफेद रोटी आकाश में तैर रही हैं। मैं खुद चौंका कि यह कौन सा प्रतीक हैं। यह किस कविता में आता हैं सफेद रोटी? आकाश में तैर रही है।
मगर तीन दिन का भूखा आदमी ओर क्या देखेगा? मीन दिन के भूखे आदमी की आंख सिर्फ रोटी की तालाश कर रही थी। हर जगह उसे रोटी दिखाई पड़ेगी। नौकरी की तलाश है..तो यहां क्लिक करे।
तुम वही देखते हो,जिसकी जरूरत हैं। छोटे बच्चे कुछ और देखते है। उनकी जरूरते अलग है। जवान कुछ और देखते है उनकी जरूरते अलग हैं, बूढ़े कुछ और देखते हैं, उनकी जरूरते अलग है।
आंख के पास एक मन हैं,जो पूरे वक्त अनुशासन देता रहता है। इसलिए अक्सर ऐसा हो जाता है कि बूढ़े और जवान आदमी में बातचीत नहीं हो पाती बातचीत मुश्किल हो जाती है,क्योंकि जवान कुछ देखता है,बूढ़ा कुछ देखता है। जावन कहता है आह् कितनी सुन्दर स्त्री हैं। और बूढ़ा कहता है क्या रख है-हड्डी मासं-मज्जा। दोनों की बात में मेल नहीं पड़ता। जवान कहता है। कहां की बात छेड़ दी,कहां की अभद्र बात छेड़ दी। इतनी सुन्दर स्त्री तुम्हें मांस-मज्जा दिखाई पड़ रही है? और बूढ़ा कहता है कुछ नहीं है सौदर्य में। मल-मूत्र भरा है भीतर,चमड़ी पर सौंदर्य। सब आकृति हैं,और कुछ भी नहीं है। जीवन आधार प्रतियोगिता में भाग ले और जीते नकद उपहार
बूढ़े को देखने का ढंग बदल गया है। असल में बूढ़े की आंख ने एक नया मन विकसित कर लिया हैं, जो जवान के पास नहीं है।
पांच इन्द्रियों के पास पांच मन हैं। और इन पांचो को जोडऩे वाला ,संगृहीत रखने वाला-अन्यथा ये बिखर जाएं-छठवां मन हैं तुम्हारे भीतर। जिसको तुम मन कहते हो,वह छठवां मन है।
इसलिए बुद्ध के छह मन की बात कही गई है। ये मन की छह अवस्थाएं है। पांच के पार उठ कर,छटवें को जानना है। यही ध्यान प्रक्रिया हैं। पांच के पार उठ कर छटवें को जानना है। जिसको पतंजलि ने धारणा कहा है।

हेनरिख हेन ने कहा है कि मैं एक दफे जंगल में तीन दिन के लिए भटक गया और रास्ता न मिला। फिर पूर्णिमा का चांद निकला, तो मैं चकित हुआ। जिंदगी में मैंने बहुत-सी कविताएं लिखीं। चांद पर बहुत कविताएं लिखीं। तो सदा मैंने चांद में कभी अपने प्रयेसी का बिम्ब देखा,कभी परमात्मा की छवि देखी,और क्या-क्या नहीं देखा। मगर तीन दिनों की भूख के बाद जब चांद निकला,तो मैंने देखा:एक सफेद रोटी आकाश में तैर रही हैं। मैं खुद चौंका कि यह कौन सा प्रतीक हैं। यह किस कविता में आता हैं सफेद रोटी? आकाश में तैर रही है।
मगर तीन दिन का भूखा आदमी ओर क्या देखेगा? मीन दिन के भूखे आदमी की आंख सिर्फ रोटी की तालाश कर रही थी। हर जगह उसे रोटी दिखाई पड़ेगी।
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