धर्म

ओशो : राम दूवारे जो मरे

मुल्ला नसरुद्दीन ने शादी की तो गांव की सब से बदशक्ल औरत से शादी की। होशियार आदमी! गांवभर के लोग पूछने लगे कि नसरुद्दीन, तुझे अच्छी—से—अच्छी स्त्री मिल सकती थी, गांव में कितने लोगों के तेरे ऊपर निमंत्रण आए, कितने पिताओं ने तुझे समझाया, कितने न्यौते तुझे मिले, और तूने इस स्त्री को चुना? जिसे भूत पलीत भी देख लें तो भाग खड़े हों! उसने कहा : भाई, इसमें राज है। यह घर में रहेगी तो चिंता नहीं होगी। एक तो इसकी वफ़ादारी पर कभी शक पैदा नहीं हो सकता। यह एक बड़ा लाभ है, कि यह सदा वफ़ादार रहेगी, यह कभी धोखा नहीं दे सकती। धोखा देगी किसके साथ? इस गांव में तो कोई है नहीं जो इसके पास भी आ सके!
जैसा मुसलमानों में रिवाज है, जब विवाह कर पत्नी को घर लाया तो पत्नी ने पूछा कि नसरुद्दीन, रिवाज के अनुसार पूछती हूं कि किस—किस के सामने घूंघट उठा सकती हूं? किस—किस के सामने बुरका उठा सकती हूं? नसरुद्दीन ने कहा : मुझे छोड़कर जिसके सामने उठाना हो उठा। और ऐसे भी मैं दिनभर घर आने वाला नहीं हूं, रात के अंधेरे में ही आऊंगा। डरवा जितनों को डरवा सके!! आखिर तुझ से शादी किसलिए की है!
सुंदर स्त्रियां लोगों को चिंताएं ले आती हैं। धन चिंता ले आता है। सुंदर पुरुष चिंता ले आते हैं। चिंता स्वाभाविक है, उसके पीछे गणित है। जब स्त्री इतनी सुंदर है तो कोई अकेले तुम ही उसके चाहक होओगे? और भी चाहक होंगे। और अगर तुम्हीं अकेले चाहक हो उसके तो क्या ख़ाक सुंदर है! कि कोई और न मिला, तुम्हीं मिले! जब स्त्री सुंदर है, जितनी सुंदर है, उतने ही उसके चाहक होंगे। जब पुरुष सुंदर है, तो उतनी ही उसे चाहने वाली स्त्रियां होंगी।
फिर संदेह पैदा होता है, फिर शक पैदा होता है। लोग शक—शक में ही जीते हैं, संशय—संशय में ही जीते हैं। मरे जाते हैं, सड़े जाते हैं। और सुंदरतम स्त्री भी दो दिन से ज्यादा थोड़े ही सुंदर रहती है! जब उसको पहचान लिया, जान लिया, फिर क्या करोगे? दो दिन बाद सब शांत हो जाता है। वह तो दूर थी तो सुंदर थी। जैसे—जैसे पास आएगी वैसे—वैसे सौंदर्य समाप्त हो जाएगा। जब तुम उसे घर में ले आओगे डोले में बिठा कर, बस तभी मुसीबत खड़ी हो जाएगी।

Related posts

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—305

Jeewan Aadhar Editor Desk

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—415

Jeewan Aadhar Editor Desk

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से— 379