धर्म

परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—89

एक दिन धुन्धुकारी ने अपनी माता को बहुत पीटा और कहा,बता धन कहाँ रखा है? नहीं तो अभी तेरी जलती लकड़ी से खबर लूंगा।
पुत्र की धमकी से डरकर और उसके उपद्रवों से दुखी होकर वह रात्रि के समय कुएँ में जा गिरी और इसीसे उसकी मृत्यु हो गई। इस प्रकार धुन्धुली आत्मदेव और गोकर्ण के चले जाने से बहुत दुखी हुई। धुन्धुली शराब पी-पीकर नशे में अन्धा बनकर माँ को पीटने लगा, उसके दु:खो से तंग आकर माँ ने आत्महत्या कर ली।

उधर धुन्धुकारी जूआ,शराब,वेश्यागमन आदि घृणित व्यसनों में गिरता चला गया। एक बार धनोपार्जन करने के लिए राजा के महल में उसने चोरी की और बहुत सा धन, अलंकार आदि चुराकर वेश्याओं को खुश करने के लिए उन्हें सब कुछ सौंप दिया। वेश्याओं ने सोचा, यदि धुन्धुकारी राजमहल की चोरी के जुर्म में किसी दिन पकड़ा गया,तो हमारा सारा धन छीन लिया जाएगा और उसके साथ जुर्म में किसी दिन पकड़ा गया,तो हमारा सारा धन छीन लिया जायेगा और साथ में हमें सजा भी मिल सकती है। तो क्यों न हम इस धुन्धुकारी को मार कर निश्चिन्त हो जाएँ?

ऐसा सोचकर वेश्याओं ने उसे फांसी पर लटका दिया,लेकिन पापी की आत्मा इतनी जल्दी नहीं निकलती,जब वेश्याओं ने उसे तड़पते हुए जीवित पाया तो कहते हैं कि उसके मुख में गर्म गर्म अंगारे डाले तथा जीवित को ही पृथ्वी में उसके शरीर को गाड़ दिया। इस प्रकार अपने दुष्कर्मो के कारण अकाल मौत को प्राप्त हुआ और भंयकर प्रेत बना। कहते हैं पापी तो यमपुरी में भी नहीं जा सकता,उसे प्रेत बनना ही पड़ता है।

यह हिन्दु सनातम धर्म की मान्यता है कि जिसकी अकाल मृत्यु होती है अथवा जो आत्महत्या करके मरता है उसकी सद्गति नहीं होती और उसकी आत्मा भटकती रहती है तो उसकी सद्गति करवानी पडती है। गायजी जाकर पिण्ड दान करने से,श्राद्ध आदि करने से वह आत्मा भूत,प्रेत,पिशाच, आदि की यानि से छुटकर सद्गति को प्राप्त हो जाता है।

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