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एक सूफी कहानी है। उस राजधानी में एक ही गरीब आदमी था, एक ही भिखमंगा था। और राजधानी के वजीर ने अपने सम्राट को कहा कि एक ही भिखमंगा है, वह हमारी बदनामी है। इसको धन दे दो।
एक फकीर बैठा था दरबार में वह हंसने लगा। उसने कहा: देने को कुछ भी न होगा।
सम्राट ने कहा: क्यों नहीं होगा।
फकीर ने कहा: एक उपाय करें। यह आदमी रोज निकलता है जिस रास्ते से, उस पर ठीक हंडा भर कर अशर्फियां रख दी जायें और देखे क्या होता है। एक पुल से वह आदमी रोज गुजरता था। अपने भीख मांग कर वही बैठता था पुल के पास, दिन-भर भीख मांगता,सांझ को सूरज डलने को होता,तब अपने घरी की तरफ जाता। उस पुल के बीच में एक बड़ी गागर सोने की अशर्फियों से भर कर रख दी गयी। काफी था उस भिखारी के लिए जन्मो-जन्मों के लिए,इतना धन था। राजा,फकीर,वजीर, सब दूसरे किनारे खड़े होकर देख रहे है। वे बड़े चकित हुए। जब वह भिखारी वहां से निकला तो आंखे बंद किये निकला। आंखे बंद किये टटोलते-टटोलते भला-चंगा था, आंखे ठीक थी उसकी।
जब वह इस किनारे आया तो राजा ने पूछा कि भई भिखारी,हद हो गयी,तुम आंख बंद करके क्यों आये?
उसने कहा कि मेरे मन में एक खयाल कई दिनों से उठता था कि एक दफे पुल पर से आंख बंद करके गुजरा जाये। मेरा एक मित्र अंधा हे,वह कैसे गुजरता होगा- यह जानने के लिए,यह अनुभव करने के लिए मैं कई दफे सोच चुका था कि एक दफा इस पुल से मैं भी आंख बंद करके गुजरूंगा। आज मैंने कहा,आज गुजर ही लिया जाये।
फकीर ने कहा: आप देखते हंै? सोने का घड़ा भरा रखा था आज, आज इसको यह खयाल आ गया। यह संयोगवशात् नहीं है। इस आदमी की गरीब होने की आदत ही हो गई है,गहरी आदत हो गयी है,लत हो गयी है। यह अक्सर गंवाता रहा है।
लतेंहो जाती हैं। तुम फिर से हजारों दरवाजे के पार आओगे,कौन जाने कौनसा तुम्हारे दिमाग में खयाल आ जाये। या यही खयाल आ जाये कि , नौ सो निन्यानबे दरवाजे बंद थे,अब हजारवां क्या खुला होगा? चलो कौर टटोले,ऐसे निकल चलो। कोई भी बहाना आ सकता है।
स्मरण रखना,जो अवसर अभी हाथ में हैं उसे किसी भी कारण गंवाना नहीं है।
मानुष जन्म अमोल अपन सो खोईल हो। अपने ही हाथ से लोग खाते रहे है।
धनी धरमदास कहते है:मैं तो बच गया गंवाने से,क्योंकि साहब कबीर ने ऐसा प्यारा गीत सुनाया उस मानरसरोवर का कि मेरी स्मृति जगा दी।
सद्गुरू का काम यही है कि गीत गायें- गीत गाये मानसरोवर के। उनके कानों में फुसफुसाये,जो डबरों से राजी हो गये हैं, उन्हें असली संपदा की याद दिलाये, जो कूड़ा-करकट बटोर रहे है। उन्हें उनके साम्राज्य की सुधि दिलाये, जो भिखमंगे हो गये है। साहेब सोहर सुगावल… ऐसी प्यारी स्ृमति जगा दी है कबीर ने। ऐसा गीत गाया है,ऐसी धुन बजा दी है,हृदय-तंत्री छेड़ दी है।
इसी बार चेतना है अभी चेतना है। इसी जन्म में चेतना है। इाी जीवन को रूपान्तरण करना है। आज ही पहुंचना है मानसरोवर। कल पर नहीं टालना है। बहुत टटोल चुके।
इसी मन में,इसी तन में,चेत जाना है। जो आज चेतेगा वही चेतेगा। कल पर मत टालना। और टालने के बहुत बहाने आते हैं। कई बार तो बहुत अच्छे बहाने आते है। अच्छे बहाने ऐसे होते है कि आदमी सोचता है कि दुनिया में इतना दुख है,और मैं ध्यान करूं?
मेरे पास लोग आते हैं। वे कहते है: आप ध्यान सिखते है और संसार में इतना दुख है। लोग इतने पीडि़त और परेशान है। इतनी गरीबी, इतना अकाल, इतनी बाढ़, इतने युद्ध- और आप ध्यान सिखाते है। आप लोगों को स्वार्थी बनना सिखाते है।