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स्वामी राजदास : मनोबल

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एक बार गौतम बुद्ध विहार करते हुए शाल्यवन में एक वट वृक्ष के नीचे बैठ गए। धर्म चर्चा शुरू हुई तो एक भिक्षु ने प्रश्न किया – ‘भगवन, कई लोग दुर्बल और साधनहीन होते हुए भी बड़े-बड़े कार्य कर जाते हैं, जबकि साधन संपन्न लोग भी वैसा नहीं कर पाते। ऐसा क्यों?’ इस प्रश्न पर बुद्ध एक प्रेरक कथा सुनाने लगे, ‘विराट नगर के राजा सुकीर्ति के पास लौहशांग नामक एक हाथी था। राजा ने कई युद्धों में इस पर आरूढ़ होकर विजय प्राप्त की थी। धीरे-धीरे लौहशांग भी वृद्ध होने लगा और युवावस्था वाला पराक्रम जाता रहा। उपयोगिता और महत्व कम हो जाने के कारण उसके भोजन में कमी कर दी गई। अक्सर हाथी को भूखा प्यासा ही रहना पड़ता।
कई दिनों से पानी न मिलने पर एक बार लौहशांग हाथीशाला से निकल कर पुराने तालाब की ओर चला गया। वहां उसने भर पेट पानी पिया और नहाने के लिए गहरे में जाने लगा। उस तालाब में कीचड़ बहुत था तो वृद्ध हाथी उसमें फंस गया। यह समाचार राजा सुकीर्ति तक पहुंचा। हाथी को निकलवाने के कई प्रयास किए गए पर फायदा नहीं हुआ। जब सारे प्रयास असफल हो गए, तब एक चतुर मंत्री ने युक्ति सुझाई। सैनिकों को जिरह बख्तर पहनाए गए और सबको हाथी के सामने खड़ा कर दिया गया।
हाथी के सामने युद्ध नगाड़े बजने लगे और सैनिक इस प्रकार कूच करने लगे जैसे वे शत्रु पक्ष की ओर से लौहशांग की ओर बढ़ रहे हैं। यह देखकर लौहशांग में यौवन काल का जोश आ गया। उसने जोर की चिंघाड़ लगाई और शत्रु सैनिकों पर आक्रमण करने के लिए कीचड़ से निकलकर उन्हें मारने दौड़ पड़ा। बाद में बड़ी मुश्किल से उसे नियंत्रित किया गया।’ कथा सुनाकर तथागत बोले, ‘संसार में मनोबल ही प्रथम है। वह जाग उठे तो असहाय और विवश प्राणी भी असंभव होने वाले काम कर दिखाते हैं।’
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