धर्म

परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—38

एक सदना नाम का कसाई था,मांस बेचता था—पर भगवत भजन में बड़ी निष्ठा थी। एक दिन एक नदी के किनारे से जा रहा था। रास्ते में एक पत्थर पड़ा मिल गया। उसे अच्छा लगा उसने सोचा बड़ा अच्छा पत्थर है, क्यों ना, मैं इसे मांस तोलने के लिए उपयोग करू। उसे उठाकर ले आया। और मांस तोलने में प्रयोग करने लगा।

जब एक किलो तोलता तो भी सही तुल जाता, जब दो किलो तोलता तब भी सही तुल जाता, इस प्रकार चाहे जितना भी तोलता हर भार एक दम सही तुल जाता, अब तो एक ही पत्थर से सभी माप करता और अपने काम को करता जाता और भगवन नाम लेता जाता।

एक दिन की बात है उसी दूकान के सामने से एक ब्राह्मण निकले।ब्राह्मण बड़े ज्ञानी विद्वान थे। उनकी नजर जब उस पत्थर पर पड़ी, तो वे तुरंत उस सदना के पास आये और गुस्से में बोले, ये तुम क्या कर रहे हो ?? क्या तुम जानते नहीं जिसे पत्थर समझकर तुम तोलने में प्रयोग कर रहे हो, वे शालिग्राम भगवान है। इसे मुझे दो, जब सदना ने यह सुना तो उसे बड़ा दुःख हुआ और वह बोला, हे ब्राह्मण देव! मुझे पता नहीं था कि ये भगवान है । मुझे क्षमा कर दीजिये,और शालिग्राम भगवान को उसने ब्राह्मण को दे दिया।

ब्राह्मण शालिग्राम शिला को लेकर अपने घर आ गए और गंगा जल से उन्हें नहलाकर, मखमल के बिस्तर पर, सिंहासन पर बैठा दिया, और धूप, दीप,चन्दन से पूजा की। जब रात हुई और वह ब्राह्मण सोया तो सपने में भगवान आये और बोले, ब्राह्मण मुझे तुम जहाँ से लाए हो वही छोड आओं । मुझे यहाँ अच्छा नहीं लग रहा। इस पर ब्राह्मण बोला भगवान ! वो कसाई तो आपको तुला में रखता था, दूसरी और मांस तोलता था, उस अपवित्र जगह में आप थे।

भगवान बोले – ब्रहमण आप नहीं जानते जब सदना मुझे तराजू में तोलता था तो लगता था,मानो हर पल मुझे अपने हाथों से झूला—झूला रहा हो।जब वह अपना काम करता था तो हर पल मेरे नाम का उच्चारण करता था। हर पल मेरा भजन करता था, जो आनन्द मुझे वहाँ मिलता था वो आनंद यहाँ नहीं। इसलिए आप मुझे वही छोड़ आये। तब ब्राह्मण तुरंत उस सदना कसाई के पास गया और बोला मुझे माफ कर दीजिए,वास्तव में तो आप ही सच्ची भक्ति करते है। ये अपने भगवान को संभालिए।
प्रेमी सु्ंदरसाथ जी, भगवान बाहरी आडम्बर से नहीं भक्त के भाव से रिझते है।उन्हें तो बस भक्त का भाव ही भाता है।

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