धर्म

परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—5

1947 में भारत आजाद हुआ। इस आजादी को पाने में कितनों को शहीद बनना पड़ा,कितनों को फांसी पर लटकना पड़ा और कितनों को उम्र कैद की सजा हुई। 15 अगस्त 1947 को प्रात:काल यह घोषणा की गई, जो उम्र कैदी हैं, उनको आजादी की खुशी में छोड़ दिया जाये। लाहौर जो आजकल पाकिस्तान में है। उसमें एक नवयुवक रणवीर भी कैदी था।

उनके पिता आर्य समाज में आनन्द स्वामी के नाम से प्रसिद्ध हुए हैं। वे उच्च कोटि के प्रचारक थे। वह अपने बेटे रणवीर को लाने के लिए जेल आए, परन्तु बेटे ने कहा, पिताजी, मैं घर नहीं जाऊंगा,क्यों? क्योंकि पिता जी आज मैंने स्वप्र में माँ को गला घोट कर मार दिया,यदि यह स्वप्र कल को सच हो जाए तो आज मैं आजादी का दीवाना के रूप में कैदी हूं, और फिर माँ का हत्यारा बन कर मुझे यहा रहना होगा।

पिता ने सोचा ऐसा स्वप्र आने के कई कारण हो सकते है,पूछा बेटे रात को कोई ऐसा सिनेमा तो नहीं देखा,जिसमें कार-काट का नाटक किया गया हो? नहीं पिता जी। पता किया गया कि भोजन किस ने बनाया है? तो पता चला कि भोजन बनाने वाला कोई कैदी था,जिसने बुरी संगत में पडऩे के कारण अपनी माँ के गले में पहनी हुई चैन लेने के लिए उसकी हत्या कर दी। खाना बनाते समय उसको वही जुर्म याद आ रहा था। उसी के कारण रणवीर को ऐसा स्वप्र आया।
यह मानसिक विचारों का अन्न द्वारा दूसरों पर प्रभाव। इसीलिए कहा जाता है-
जैसा खाए अन्न,वैसा होए मन।
जैसा पीए पानी वैसी बोले वाणी।।

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