हिसार,
प्रमुख समाजसेवी व राष्ट्रवादी मोहनलाल लाहौरिया का निधन हो गया है। वे कुछ समय से बिमार चल रहे थे। उनका अंतिम संस्कार आज 3 बजे बस स्टैंड के पीछे स्थित शमशान घाट में किया जायेगा। मोहनलाल लाहौरिया का पूरा जीवन समाज और राष्ट्र को समर्पित रहा है। राष्ट्रभक्त होने के कारण उन्होंने आपातकाल के दौरान जेल भी काटी।
उनको आपातकाल के दौरान 1975 में जेल भेजा गया था तथा कड़ी यातानाएं दी गई थी। मोहनलाल लाहौरिया का जन्म 26 सितंबर 1945 के दौरान पाकिस्तान के लाहौर शहर में हुआ था। उनके पिता सेठ जुगल किशोर लाहौरिया उस समय में लाहौर में नेताजी सुभाषचंद्र बोस के साथ रानी लक्ष्मीबाई ब्रिगेड में काम करते थे। मोहनलाल लाहौरिया ने भारत-पाक विभाजन के बाद हिसार में आकर अपनी पढ़ाई की। उनको बचपन से ही देशभक्ति के संस्कार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा से प्राप्त हुए। माता-पिता धार्मिक प्रवृति के होने के कारण बचपन से ही उनकी रूचि धार्मिक क्रिया कलापों में रही।
हिसार को अपना कर्मभूमि बनाते हुए यहां पर समाज को शिक्षित करने के उद्देश्य से मोहनलाल लाहौरिया ने स्कूल खोला। इसके अलावा भारत माता मंदिर बनाने में उनका काफी योगदान रहा। विश्व हिंदू परिषद् के हिसार में वे आधार स्तंभ रहे।
सेवा भारती से जुड़कर उन्होंने हिसार क्षेत्र में सेवा का काम अपने कंधों पर लिया। वनवासी कल्याण आश्रम से जुड़े प्रत्येक कार्य में उनका सहयोग अतुल्या रहा। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से विशेष लगाव के चलते उन्होंने हिसार में स्वामी विवेकानंद भवन का निर्माण भी अपनी देखरेख में करवाया। महोनलाल लाहौरिया अस्वास्थ रहने के बाद भी कर्म को महत्व देते हुए समाजसेवा के कार्य में लगे रहते थे।
बिमार होने के बाद भी उन्होंने काबरेल में गौ अनुसंधान केंद्र का काम अपने कंधों पर लिया और उसका पूरा निर्माण अपनी देखरेख में करवाया। अंतिम सांस लेने तक वे काबरेल गौ अनुसंधान केंद्र में काम करते रहे। मोहनलाल लाहौरिया के निधन ने हिसार ने एक कर्मठ समाजसेवी, राष्ट्रवादी, कर्मयोगी और प्ररेणादायक इंसान को खो दिया। जिसकी क्षतिपूर्ति होना असंभव है।
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