एक बार गौतम बुद्ध के पास एक स्त्री आई और विलाप करने लगी कि सांप के काटने से उसके पुत्र की मृत्यु हो गई है। स्त्री अपने इकलौते पुत्र को जीवित कराने के लिए बार-बार उनसे विनती कर रही थी। बुद्धदेव ने उससे प्रश्न किया, ‘क्या तुम नहीं जानती कि इस संसार में जो भी जन्म लेता है, उसका एक दिन अंत होना निश्चित है?’
उस स्त्री ने कहा, ‘हां अच्छी तरह जानती हूं। मगर आप पहुंचे हुए महात्मा हैं और आपमें इतनी सामर्थ्य है कि आप मेरे पुत्र को जीवित कर सकते हैं, इसलिए मैं आपसे याचना कर रही हूं। मेरा वह बेटा मेरी इकलौती संतान थी। मैं आपसे उसके जीवन की आस लेकर आपके पास आई। मगर आप तो मुझे उपदेश दे रहे हैं। यदि आप उसे जीवित नहीं कर सकते, तो कृपया साफ-साफ बता दें।’
बुद्धदेव ने जान लिया कि पुत्र-वियोग में शोकमग्न इस स्त्री को समझाना कठिन है। उन्होंने कहा, ‘ठीक है, मैं तेरे पुत्र के लिए प्रभु से प्रार्थना करता हूं। मगर तू इसके लिए किसी घर से राई लेकर आ, लेकिन इस बात का ध्यान रखना कि जिस घर से तू राई लेकर आए उस घर में कभी किसी की मृत्यु नहीं हुई हो।’
स्त्री के मन में आशा का संचार हुआ। उसने सोचा कि राई तो आसानी से प्राप्त हो जाएगी। लेकिन वह जिस घर में जाती, वहां यही जवाब मिलता कि उसके घर में किसी न किसी की मृत्यु अवश्य हुई है। वह बेचारी थक गई, लेकिन किसी भी घर से राई नहीं मिली। उसे इस बात की समझ आ रही थी कि मृत्यु अटल एवं अवश्यंभावी है और उसका सामना किसी न किसी दिन हर एक को करना ही पड़ता है।
थक-हारकर वह बुद्धदेव के पास लौटी और उसने बताया कि उसे कोई ऐसा घर नहीं मिला जहां किसी की मृत्यु नहीं हुई हो। लेकिन अब अन्य लोगों के समान वह भी इस दुख का धैर्य और साहसपूर्वक सामना करेगी।
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