धर्म

ओशो : गुरू और शिष्य का मिलन नदी-सागर-सयोंग

जो बुद्ध के पास थे या जो महावीर के पास थे, या जो नानक के,कबीर के पास थे, जो सच में पास थे…। उनकी नहीं कह रहा हूं, जो भीड़ लगाकर खड़े थे। भीड़ लगाकर खड़े होने से कोई पास है, यह पक्का नहीं है। पास तो वही है,जिसके भीतर ऐसे प्रेम का उदय हुआ है, जिसका अब कोई अंत नहीं है। वही पास है,जिसके भीतर शाश्वत प्रेम की ज्वाला जली है, जो अब कभी बुझेगी नहीं, जो बुझ ही नहीं सकती। वही गुरू और शिष्य संंबंध है। वह इस जगत में अपूर्व संबंध है। वह इस जगत में है, और जगत का नहीं है। वह संसार में घटता है,और संसार के पार हैं।
तो गुरू और शिष्य का मिलन नदी-सागर-सयोंग है। पहली बात।
दूसरी बात तुमने पूछी है- लेकिन क्या यह सच नहीं है कि नदी सागर के पास जाती है,सागर नदीं के पास नहीं आता?

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नहीं:ऊपर-ऊपर से ऐसा दिखता है कि नदी सागर के पास जाती है। भीतर-भीतर कहानी बिलकुल और है। भीतर-भीतर कहानी ऐसी है कि सागर नदी के पास आता है।
ऊपर-ऊपर ऐसा दिखता है ,शिष्य गुरू के पास आता है। भीतर-भीतर ऐसा है कि गुरू शिष्य के पास जाता है। जब तक गुरू शिष्य के पास नहीं गया, शिष्य गुरू के पास आ ही नहीं सकेगा। शिष्य बेचारा क्या आएगा। अंधा- अंधेरे में टटोलता? जो रोशनी में खड़ा है,वहीं..। जो भटका है, वह कैसे गुरू को खोजेगा? जो पहुंच गया है,वही भटके को खोज सकता है।
और वस्तुत: भी ऐसा ही होता है। सूक्ष्म तल पर सागर ही नदी में आता है। तुम देखते नही: रोज सागर चढ़ता है भाप बनकर बादलों में,आकाश में,और गिरता है पहाड़ों पर और नदियों में उतरता है। रोज तो यह होता है,फिर भी तुम खयाल नहीं लेते। सागर रोज चढ़ता है,किरणों का सहारा लेकर, किरणों की सीढिय़ों से। बादल बनता है। मेघ बनता है। फिर मेघ चलते उड़ते पहाड़ो की तरफ।
मेघ में तुम्हें सागर दिखायी नहीं पड़ता,क्योंकि मेघ सूक्ष्म है। इसलिए तुम्हें भूल हो गयी। इसलिए तुम्हें खयाल में नहीं आया कि अगर सागर नदी के पास न जाए, तो नदी सागर तक कभी नहीं पहुंच सकेगी। नदी में जल ही नहीं होगा तो सागर तक पहुंचने का।
रोज सागर आता मेघ बनकर और गिरता गंगोत्रियों में,और गंगा बनती,और गंगा बहती ,और गंगा सागर तक पहुंचती।
गंगा सागर तक तभी पहुंच पाती है,जब सागर पहले गंगा तक पहुंच जाता। नहीं तो गंगा बन ही नहीं सकती। गंगा के पास कोई उपाय नहीं है सागर तक पहुंचने का। बिना मेघों के आए गंगा क्या होगी? रेत का एक सूखा रास्ता,जिस पर कोई जलधारा नहीं होगी।

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ऐसा ही गुरू और शिष्य का संबंध है। गुरू मेघ बनबर आता है,इसलिए दिखायी नहीं पड़ती, सूक्ष्म तल पर आता है, तुम्हारे अंतस्तल में आता है, इसलिए दिखायी नहीं पड़ता है।
तुम जब गुरू की तरफ जाते हो, तो दिखायी पड़ता है- कि चले। गंगा जब जाती है सागर की तरफ, तो अंधे को भी दिखाई पड़ता है कि चली गंगा सागर की तरफ। यह तो बहुत गहरी आंख हो तो दिखायी पड़ता है, जब बादलो की तरफ उठने लगी,भाप,तो सागर गंगा की तरफ, गुरू चला शिष्य की तरफ।
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