धर्म

परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से-24

एक कुम्हार माटी से चिलम बना रहा था। चिलम बनाने के लिए उसने माटी को आकार देना शुरू कर दिया। 5 मिनट में ही ​माटी से सु्रदर आकार की चिलम बनकर तैयार हो गई। लेकिन उसी समय कुम्हार ने चिलम को दोबारा ​​कच्ची ​माटी में मिला दिया।

चिलम में लगी माटी से कुम्हार से पूछा, क्या हुआ??? अच्छी चिलम बनी फिर दोबार माटी में क्यों मिला दिया। कुम्हार बोला—पहले मैं चिलम बनाना चाहता था। लेकिन अब विचार बदल गया। अब मैं इस माटी से सुराई बनाने जा रहा हूं। ये सुनते ही माटी प्रसन्न हो गई और कुम्हार कम आभार जताने लगी।

कुम्हार ने माटी से खुशी का कारण पूछा तो माटी बोली, चिलम बनकर मैं खुद भी पूरी उम्र जलती और दूसरों के जीवन को भी जलाती। अब सुराई बनकर मैं भी सदा शीतल रहूंगी और दूसरों के जीवन में भी शीतलता प्रदान करूंगी।

प्यारे सुंदरसाथ जी, कहानी का सार है कि यदि हम कोई भी निर्णय लेने से पहले एक बार उस पर विचार कर ले तो हम सही निर्णय ले पायेंगे और एक सही निर्णय ना केवल आपकी बल्कि दूसरों के जिंदगी भी खुशियों से भर देगा।

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