धर्म

ओशो : सहज योग

जरा-सा धक्का! वही तो गुरु करता है। गुरु कुछ लेता-देता थोड़े ही है, जरा-सा धक्का! जरा झकझोर देना और नींद टूट गई, और सपने बिखर गए, और सत्य प्रकट हो गया! और तुम पत्थरों के सामने झुक रहे हो!किसी सद्गुरु को खोजो। पत्थर तुम्हें झकझोर नहीं सकते, पत्थर तुम्हें जगा नहीं सकते..खुद ही सोये हुए हैं। पत्थर तो निद्रा की आखिरी अवस्था है। पत्थरों के सामने दीये जला रहे, समय गँवा रहे।
किसी सद्गुरु को खोजो। कहीं जहाँ चैतन्य प्रगट हुआ हो, जहाँ दीया जल गया हो..वही तुम्हें जगा सकता है। जागा हुआ तुम्हें जगा सकता है।तुम कारागृह के भीतर हो। जो कारागृह के बाहर हो, उससे संबंध जोड़ो। और माना कि बड़ी अड़चन होती है। कारागृह के भीतर जो है, उसका संबंध बाहर से जुड़ना बड़ा कठिन मालूम होता है। सबसे बड़ी कठिनाई यही होती है कि कारागृह की भाषा अलग है, बाहर की भाषा अलग है। सोये की भाषा अलग, जागे की भाषा अलग! संवाद नहीं हो पाता। सोये की धारणाएँ अलग, जागे की धारणाएँ अलग! संबंध नहीं जुड़ पाता।
इसलिए तो जागे हुए पुरुषों को हम कभी भी अंगीकार नहीं कर पाये। अंगीकार भी हमने उन्हें किया तो तभी किया जब वे जा चुके थे।फिर हमने उनकी पत्थर की मूर्तियाँ बना लीं, और सदियों तक पूजा हम करते हैं। जिंदा बुद्धों को इनकार करते हैं, मुर्दा बुद्धों की पूजा करते हैं! जैसे पत्थर की मूर्ति से हमारा संवाद ज्यादा आसान होता है! हम भी पत्थर हैं, और मूर्ति भी पत्थर हैं.. दोस्ती बन जाती है। बुद्धों से बड़ी मुश्किल हो जाती है।हम कहते तो हैं कि हमें जगाओ, मगर सच में हम नहीं चाहते कि कोई हमें धक्का मारे, कोई हमें झकझोरे। हम चाहते तो हैं कि जाग जाएँ, मगर हम चाहते हैं कि हमारे सारे सुंदर सपने भी बच जाएँ और जाग भी जाएँ।हाँ, हम चाहते हैं कि दुख-स्वप्न छूट जाएँ, मगर सुंदर प्यारे सपने बच जाएँ। यह नहीं हो सकता!जागोगे तो सब सपने टूट जायेंगे.. सुंदर-असुंदर, प्यारे-जहरीले, सब टूट जायेंगे!

Related posts

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज—148

स्वामी राजदास : शिष्यों के प्रति समान दृष्टि

सत्यार्थ प्रकाश के अंश-04