धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—281

एक सेठ के पास अपार धन संपदा थी। उसके पास किसी भी चीज की कमी नहीं थी, लेकिन वह अशांत था। एक दिन उसके नगर में तपस्वी संत आए। संत ने मिलने वह सेठ भी पहुंच गया। सेठ ने स्वर्ण मुद्राओं से भरी थैलियां संत के चरणों में रखी और कहा कि गुरुदेव मुझे आशीर्वाद दीजिए। मुझे मन की शांति चाहिए। संत ने सेठ से कहा कि ये सब यहां से हटा लो, मैं गरीबों से दान नहीं लेता हूं। ये सुनकर सेठ को आश्चर्य हुआ। उसने कहा कि गुरुजी मैं अमीर इंसान हूं, आप मुझे गरीब कैसे बोल रहे हैं?

संत बोले कि अगर तू अमीर है तो मुझसे किस बात का आशीर्वाद चाहिए? सेठ ने कहा कि महाराज आपका आशीर्वाद मिल जाता तो मैं इस नगर का सबसे अमीर इंसान बन जाता। संत ने उससे कहा कि भाई जब तुम्हारी इच्छाओं का ही कोई ठीकाना नहीं है तो तुम खुद भिखारियों से अलग क्यों मानते हो? धन के लोभ में तुम्हें शांति नहीं मिल सकती है।

ऐसे ही अनेक लोग हैं जो काम वासनाओं और लालच में फंसे रहते हैं, लेकिन वे चाहते हैं कि उनकी गिनती धार्मिक आचरण करने वाले लोगों में हो। वे ऐसा दिखावा करते हैं कि वे सभ्य और कुलीन हैं, लेकिन ऐसा संभव नहीं है। जब हम इच्छाओं का त्याग करेंगे, तभी हमारा मन शांत हो सकता है और हमारी गिनती कुलीन लोगों में हो सकती है।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, अगर सुख-शांति चाहते हैं तो इच्छा का त्याग करना होगा। लालच से बचना होगा। इसके हमारा मन शांत नहीं हो सकता है। अगर हम सिर्फ दिखावे के लिए कुछ भी काम करेंगे तो उससे कोई लाभ नहीं मिलेगा।

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Jeewan Aadhar Editor Desk