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UPA के 43000 करोड़ लोन की वजह से बढ़े पेट्रोल के दाम? जानें पूरा सच

नई दिल्ली,
पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमत से लाखों लोग परेशान हैं। यही वजह है कि कई लोग सोशल मीडिया के माध्‍यम से अपना दर्द व्‍यक्‍त कर रहे हैं। साथ ही पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमत को लेकर कई पॉलिटिकल पोस्‍ट भी वायरल हो रहे हैं। कुछ पोस्‍ट में मोदी सरकार पर दाम बढ़ाने को लेकर हमला किया जा रहा है तो कुछ पोस्‍ट में पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमत के लिए पूर्व की यूपीए सरकार को दोषी ठहराया जा रहा है। ऐसे में सोशल मीडिया में एक मैसेज वायरल हो रहा है, जिसके अनुसार भारत ने ईरान से 43,000 करोड़ रुपये लोन लिया था और वह उसे चुका नहीं पाया था। इस वजह से पेट्रोल-डीजल की कीमत बढ़ रही है।
आपको बता दें कि 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिन के दौरे पर ईरान गए थे। उस दौरान कई अहम समझौते हुए। सोशल मीडिया पर तब से ही यह पोस्‍ट वायरल हुआ था, पेट्रोल के दाम बढ़ने पर एक बार फ‍िर यह पोस्‍ट सोशल मीडिया पर शेयर हो रहा है। हालांकि इस पोस्‍ट में आधा सच सामने आ रहा है।
भारत अपने कच्‍चे तेल की ज़रूरतें पूरी करने के लिए सबसे ज्यादा सऊदी अरब पर निर्भर है। इसके बाद सबसे ज्यादा तेल ईरान और फिर इराक से आता था। चीन के बाद भारत ईरान का सबसे बड़ा कच्चा तेल का आयातक देश है। भारतीय तेल कम्पनियां जैसे कि हिन्दुस्तान पेट्रोलियम, भारत पेट्रोलियम, मेंगलुरु रिफाइनरी एण्ड पेट्रोकेमिकल लिमिटेड एवं इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन ईरान से कच्‍चा तेल खरीदती है।
ऐसे में 2011 तक सब ठीक चलता रहा। हालांकि परमाणु हथियार बनाने के आरोप में 2011 में अमेरिका और अन्य ताकतवर देशों ने ईरान पर प्रतिबंध लगा दिया, इससे कच्‍चे तेल के आयात पर भी असर पड़ा। ईरान भारत को जो हर रोज 4,00,000 बैरल तेल भेजता था, वो घटकर 1,00,000 बैरल प्रति दिन पर आ गया। साथ ही ईरान को भारत कच्‍चे तेल की लिए अलग तरीके से पेमेंट करता था। प्रतिबंध के बाद उस पर भी असर हुआ।
ईरान से खरीदे गए तेल का 55 फीसदी पैसा तुर्की के हल्कबैंक के जरिए पेमेंट करता था। वहीं बाकी बची 45 फीसदी रकम भारत यूको बैंक के जरिए रुपये में ईरान को देता था। 2013 में अमेरिका ने ईरान पर और भी प्रतिबंध लगा दिए, जिसकी वजह से ईरान हल्कबैंक के जरिए भारत से पैसे नहीं ले पाया। नतीजा ये हुआ कि भारत की कंपनियों पर ईरान का कुल 6.4 बिलियन डॉलर (अगर एक डॉलर की कीमत 66 रुपये माने तो कुल करीब 43,000 करोड़ रुपये) बकाया हो गया।
इस बकाये में भारत की तेल कंपनी मेंगलुरु रिफाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड को 500 मिलियन डॉलर (करीब 3,326.38 करोड़ रुपये), निजी कंपनी एस्सार ऑयल को 500 मिलियन डॉलर (करीब 3,326.38 करोड़ रुपये) और इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन को करीब 250 मिलियन डॉलर (करीब 1663.18 करोड़ रुपये) देने थे। इसके अलावा हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन को 642 करोड़ रुपये और एचपीसीएल मित्तल एनर्जी को 200 करोड़ रुपये के अलावा और दूसरी कंपनियों का भी ईरान पर बकाया था।
ये प्रतिबंध 14 जुलाई, 2015 तक चलता रहा। इसके बाद ईरान पर से कुछ प्रतिबंध हटा लिए गए। लेकिन हल्कबैंक के जरिए पेमेंट लेने पर रोक बरकरार रही। इसकी वजह से भारत की कंपनियां ईरान को पैसे नहीं चुका पाईं। वहीं हर रोज करीब 1 लाख बैरल तेल उन्होंने खरीदना जारी रखा।
2016, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ईरान गए। वहां उन्होंने ईरान के राष्ट्रपति हसन रुहानी से मुलाकात की और कई समझौतों पर दस्तखत किए। वहीं भारत में रिजर्व बैंक भी इस कोशिश में लगा था कि किसी तरह से भारत की तेल कंपनियां ईरान को अपना बकाया चुका दें। इस दौरान ईरान ने प्रतिबंध हटने के बाद से नियमों में बदलाव कर दिया। पहले तो ईरान भारत को दिए जाने वाले तेल पर आधा ही ट्रांसपोर्टेशन चार्ज लेता था, लेकिन उसने पूरा किराया लेना शुरू कर दिया।
इसके बाद ईरान जो 45 फीसदी तेल की रकम रुपये में लेता था और बाकी पैसे हल्कबैंक के जरिए लेता था, उसे भी खत्म कर दिया। नतीजा ये हुआ कि भारत को पैसे चुकाने के लिए अब नए रास्ते खोजने थे। ईरान एक तो अपने बकाये पर ब्याज चाहता था और दूसरा वो चाहता था कि उसे पैसे का भुगतान यूरो में किया जाए। इसके लिए आगे आया रिजर्व बैंक। उसने यूको बैंक के जरिए ईरान को भुगतान करने का प्रस्ताव दिया। 2016 में जब पीएम मोदी ईरान के दौरे पर गए, तो उस वक्त बकाये की करीब 5000 करोड़ रुपये की किश्त चुका दी गई और धीरे-धीरे छह किश्तों में भारत ने ईरान के 43,000 करोड़ रुपये का कर्ज चुका दिया।
ऐसे में यह कहना कि मोदी सरकार ने कर्ज चुकाया तो गलत होगा। हां मोदी सरकार ने कर्ज चुकाने के लिए कूटनीति के जरिए रोडमैप जरूर बनाया। साथ यह पैसा तेल कंपनियों के पास मौजूद थे, क्‍योंकि उस तेल को बेचकर ये कंपनियां पहले ही पैसे कमा चुकी थी, बस उस पैसे को ईरान पहुंचाना था। साथ ही यह फंसा हुआ पैसा सीधे सरकार के ऊपर नहीं, निजी और सरकारी कंपनियों के ऊपर बकाया था और ये वो पैसा था।
ऐसे में एक्‍सपर्ट के मुताबिक उस बकाया पैसे का आज पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमत से कोई ताल्‍लुक नहीं है। ऐसे में यह सच है कि ईरान पर 2011 में प्रतिबंध लगने के बाद पैसे नहीं दे पाईं थी ऑयल कंपनियां, लेकिन अब पेट्रोल-डीजल की कीमत बढ़ने पर इसका सीधा संबंध नहीं है। साथ ही इस बकाया पैसे के लिए न तो मोदी सरकार और न पूर्व की यूपीए सरकार जिम्‍मेदार थी। यह अंतराष्‍ट्र‍ीय घटनाक्रमों को असर था। पेमेन्ट चैनल में क्लैरिटी नहीं होने के चलते मामला अटका था।

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