नई दिल्ली,
सेंटर फॉर अकांउटबिलिटी एंड सिस्टिमिक चेंज (सीएएससी) संस्था के सचिव ने मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत को ज्ञापन देकर शिवसेना की राजनीतिक दल के तौर पर मान्यता रद्द करने की मांग की है। ज्ञापन में शिवसेना के मुखपत्र सामना में छपे संपादकीय का उल्लेख है जिसमें चुनाव आयोग और लोकतंत्र को सत्तारूढ़ पार्टी की रखैल बताया गया है।
#CASC representation to #ElectionCommission seeking de-recognition & FIR against @ShivSena @Saamanaonline for calling it a mistress of those in power. Whether #ECI will ensure its sanctity when EVM being questioned? @BJP4India @INCIndia @DrSYQuraishi @viraggupta @_YogendraYadav pic.twitter.com/Sbnwu79dqz
— CASC (@casc_india) May 31, 2018
संविधान के अनुच्छेद-324 के तहत चुनाव आयोग संवैधानिक संस्था है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा मनोज नरुला मामले में 2014 में दिए गए निर्णय के अनुसार संवैधानिक संस्थाओं का सम्मान करना शिवसेना की जिम्मेदारी है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा शिवाजी मामले में 1988 में दिए गए निर्णय के अनुसार चुनाव आयोग जैसी संस्थाओं के सम्मान से ही लोकतंत्र की सफलता निर्धारित होती है। सीएएससी द्वारा दिए गए ज्ञापन में चुनाव चिन्ह (आवंटन) आदेश 1968 के नियम 16-ए और नियम 18 के तहत चुनाव आयोग से शिवसेना की मान्यता रद्द करने की मांग की गई है।
शिवसेना का वक्तव्य आईपीसी की धारा-186, 188, 499, 500, 501 और 502 के तहत गम्भीर आपराधिक अपराध है जिसके लिए चुनाव आयोग द्वारा पुलिस ने एफआईआर दर्ज कराने की मांग भी ज्ञापन में की गई है। ईवीएम पर सवालिया निशान लगने के दौर में, चुनाव आयोग के संवैधानिक दर्जे के सम्मान के लिए शिवसेना के खिलाफ कानूनी कार्यवाही की मांग से आने वाले समय में राजनीतिक दलों के लिए मुश्किल दौर आ सकता है।