नई दिल्ली,
राष्ट्रपति भवन में इस बार इफ्तार पार्टी का आयोजन नहीं होगा। साथ ही देश के करदाताओं के पैसे से किसी भी धर्म का त्योहार नहीं मनाया जाएगा। जानकारी के मुताबिक इस कदम से यह संदेश देने की कोशिश की गई है कि राष्ट्रपति भवन पूरे देश के लिए धर्मनिरपेक्ष भाव रखता है, इसलिए इसमें धर्म विशेष से जुड़े किसी भी आयोजन को मंजूरी नहीं दी जाएगी। फिर चाहे वह इफ्तार पार्टी हो या फिर किसी अन्य धर्म या समुदाय से जुड़ा कोई दूसरा कार्यक्रम।
राष्ट्रपति भवन के इस फैसले के बाद देश की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने इसपर चुप्पी साध ली है। कांग्रेस ने कहा कि ये राष्ट्रपति का फैसला है। इसलिए हम इस पर कोई भी बयान नहीं देंगे।कांग्रेस ने कहा है कि राष्ट्रपति के फैसले पर सवाल उठाना सही नहीं है।
बता दें कि इससे पहले राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के कार्यकाल में दिसंबर में राष्ट्रपति भवन में क्रिसमस के दौरान कैरल सिंगिंग और दिवाली का आयोजन भी नहीं हुआ था। इससे साफ है कि रामनाथ कोविंद के राष्ट्रपति रहते राष्ट्रपति भवन में किसी भी धर्म का त्योहार नहीं मनाया जाएगा।
कलाम ने इफ्तार पार्टियों पर लगाई थी रोक
पूर्व में राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने भी अपने कार्यकाल के दौरान इफ्तार पार्टियों पर रोक लगा दी थी। वर्ष 2002 से 2007 के बीच राष्ट्रपति भवन में इफ्तार की दावतें नहीं दी गई।
दरअसल राष्ट्रपति कलाम इफ्तार की दावत पर होने वाले खर्च को निर्धन, बेसहारा बच्चों की शिक्षा के लिए दान कर देते थे। हालांकि कलाम के कार्यकाल में क्रिसमस के दौरान कैरल सिंगिंग हुई थी।
कलाम के बाद राष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठने वालीं प्रतिभा पाटिल ने फिर राष्ट्रपति भवन में इफ्तार पार्टी के आयोजन को बहाल किया, जिसको पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी जारी रखा था।
2008 में प्रतिभा पाटिल ने रद्द कर दी थी कैरल सिंगिंग
2017 से पहले सिर्फ एक बार साल 2008 में कैरल सिंगिंग का आयोजन नहीं हुआ। मुंबई हमले में मारे गए लोगों की श्रद्धांजलि में साल 2008 में पाटिल ने राष्ट्रपति भवन में कैरल सिंगिग का आयोजन नहीं कराया था, लेकिन राष्ट्रपति भवन ने इस दौरान दिल्ली में बेसहारा लोगों के लिए खाना भिजवाया गया था।
इन त्योहारों का होता रहा है आयोजन
राष्ट्रपति भवन में क्रिसमस, इफ्तार पार्टी के अलावा दिवाली, रक्षबंधन और होली जैसे त्योहार मनाए जाते रहे हैं। सभी त्योहारों में लोग राष्ट्रपति भवन जाते हैं और राष्ट्रपति को बधाई देते हैं।
बता दें कि राष्ट्रपति भवन में क्रिसमस के दौरान कैरल सिंगिंग और रमजान के दौरान इफ्तार पार्टी का आयोजन बरसों से चला आ रहा है।
दरअसल देश में इफ्तार पार्टियों की सियासत लम्बे अरसे से चली आ रही है। शुरुआत निश्चित तौर पर रमज़ान और रोजा रखने वालों के प्रति सम्मान के रूप में हुई थी लेकिन धीरे-धीरे बड़े नेताओं की इफ्तार पार्टियों से आम आदमी गायब हो गया।
कुल मिलाकर यह आयोजन सियासी समीकरणों के बनने बिगड़ने का पैमाना बनकर रह गया। कौन किसकी इफ्तार पार्टी में गया और कौन नहीं गया इसे लेकर हर साल चर्चा होती है।