हिसार

सरकार की गलत नीतियों के कारण राईस उद्योग बर्बादी के कगार पर : बजरंग दास गर्ग

हिसार,
अखिल भारतीय व्यापार मंडल के राष्ट्रीय महासचिव व हरियाणा प्रदेश व्यापार मंडल के अध्यक्ष बजरंग दास गर्ग ने कहा है कि केन्द्र व प्रदेश सरकार की गलत नीतियों के कारण राईस उद्योग पूरी तरह बर्बादी के कगार पर है। इसका मुख्य कारण सरकार द्वारा राईस मिलरों को एक क्विंटल मिलींग पर 25 सालों से 10 रुपये दिया जाना है, जबकि मिलरों के मिलींग करने पर लगभग 70-75 रुपये खर्च आता है।

एक बयान में बजरंग दास गर्ग ने कहा कि सरकार ने बिजली की दरें, पैट्रोल व डीजल में अनेक बार भारी भरकम बढ़ोतरी कर दी है, प्रदेश में बिजली, पैट्रोल, डीजल व कर्मचारियों के वेतन में लगातार बढ़ोतरियां हो रही हैं, मगर सरकार ने मिलींग के रेटों में बढ़ोतरी करने की बजाए 15 रुपये प्रति क्विंटल से घटाकर 10 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया है। सरकार को मिलींग के रेट कम से कम 100 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से राईस मिलरों को देने चाहिए। उन्होंने कहा कि जितनी मिलींग चार्ज राईस मिलर लेता है, उससे चार गुणा ज्यादा तो रिश्वत के पैसे केन्द्र व हरियाणा सरकार के सरकारी अधिकारी मिलरों से ले रहे हैं। उन्होंने कहा कि 100 किलो धान में 62 किलो चावल निकलता है, मगर सरकार राईस मिलरों से 67 किलो चावल ले रही है, जिसके कारण राईस उद्योग घाटे में चल रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि सैंकड़ों करोड़ रुपये डेमेज व होल्डिंग चार्ज के नाम पर सरकार ने राईस मिलरों के जबरन काटे हुए हैं।

सरकार राईस मिलरों को ना तो करोड़ों रुपये वापिस दे रही है और ना ही मिलींग के रेट बढ़ा रही है। उन्होंने केन्द्र व हरियाणा सरकार से मांग की है कि राईस उद्योग को बचाने के लिए एक क्विंटल पर मिलींग चार्ज 100 रुपये किया जाए, 100 किलो धान पर 62 किलो चावल जो निकलता है वही लिया जाए व राईस मिलरों का जो करोड़ों रुपये कई सालों से डेमज व होल्डिंग के नाम पर नाजायज काटे हुए हैं, उन पैसों को ब्याज सहित रिफंड किया जाए और उसके साथ-साथ राईस उद्योग व अन्य कृषि उपज उद्योगों को बचाने के लिए उद्योगपतियों के हित में अच्छी नई योजना बनाकर उन्हें हर प्रकार की रियायतें दी जाए, ताकि आज राईस व अन्य कृषि उपज उद्योग जो भारी संकट में है उन्हें बचाया जा सके। अगर सरकार ने समय रहते हुए राईस उद्योग की तरफ ध्यान नहीं दिया तो उद्योग बन्द हो जाऐंगे, और उद्योग बन्द होने के कारण किसानों को भी फसल बेचने में दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा।

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