हरियाणा

सरकार नहीं खरीद रही सरसों, किसान परेशान और हताश – बजरंग गर्ग

चण्डीगढ़,
अखिल भारतीय व्यापार मंडल के राष्ट्रीय महासचिव व हरियाणा प्रदेश व्यापार मंडल के प्रांतीय अध्यक्ष बजरंग गर्ग ने मंडियों में व्यापारी व किसानों से बातचीत करने के उपरांत कहा कि किसान अपनी सरसों को बेचने के लिए मण्डियों में धक्के खा रहे हैं। सरकार ने किसानों की सरसों को खरीदना ही आरंभ नहीं किया है। ऐसे में किसान निराश और परेशान है।
केंद्र सरकार ने सरसों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य 4200 रूपए प्रति क्विंटल का रेट रखा हुआ है। मगर सरकार द्वारा अब तक किसान की सरसों का एक भी दाना हरियाणा में नहीं खरीदा गया है। किसान मजबूरी में अपनी सरसो को 3200 रुपए बेचने के लिए जगह—जगह धक्के खा रहा है। इसी प्रकार पिछले साल भी सरसों के सीजन में भी सरकार द्वारा सरसों की पैदावार का सिर्फ 10 प्रतिशत ही सरसों खरीद की थी। जिससे किसानों को बड़ा भारी नुकसान हुआ था।
राष्ट्रीय महासचिव बजरंग गर्ग ने कहा कि इस राज में देश का किसान व व्यापारी दोनों दुखी है। किसान की फसल के दाम तो सरकार घोषित कर देती है मगर किसान की फसल नहीं खरीदती। इसलिए किसान अपनी फसल को मजबूरी में ओने—पोने दामों पर बेचने पर मजबूर हो रहा है। पहले खाद व खेती में उपयोग आने वाली दवाइयों पर टैक्स नहीं था। मगर खाद व दवाइयों पर 5 प्रतिशत जीएसटी लगाकर व खेती में उपयोग आने वाले औजार, ट्रैक्टर व उसके पार्ट्स के टैक्स में बढ़ोतरी करके किसानों की कमर तोड़कर रख दी है। इस कारण लगातार किसान कर्ज के तले दबता जा रहा है।
बजरंग गर्ग ने कहा कि सरकार अपनी विफलता को छुपाने के लिए किसान व व्यापारियों में आपसी भाईचारा खराब करने की नाकाम कोशिश कर रही है। जबकि व्यापारी व किसान का चोली—दामन का साथ है। दोनों में सदियों से आपसी भाईचारा है। जो पहले की तरह मजबूती से बना रहेगा। उन्होंने कहा सरकार को किसान की फसल का एक-एक दाना सरकारी एजेंसियों से आढ़ती के माध्यम से खरीदना चाहिए।
अनाज की खरीद में सरकारी अधिकारी किसी प्रकार की देरी करे तो केंद्र सरकार को तुरंत प्रभाव से उसके खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। बजरंग गर्ग ने कहा कि सरकारी एजेंसी द्वारा अनाज खरीदने के बाद किसी प्रकार की भी घटती आती है तो उस घटती के पैसे आढ़ती के ना काट कर उसकी जिम्मेदारी सरकारी अधिकारी व ठेकेदार की फिक्स की जाए और उस घटती की रिकवरी सरकारी अधिकारी व ठेकेदार से की जानी चाहिए। क्योंकि सरकारी एजेंसी द्वारा अनाज खरीदने पर वह माल सरकार का हो जाता है, ऐसे में अनाज घटती व बढ़ती दोनों सरकारी एजेंसियों की होती है ना की आढ़ती की होती है।

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