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आधी—अधूरी जानकारी के कारण व्यापारी बन रहे है आचार संहिता का शिकार—चुनाव आयोग को चलाना चाहिए जागरुकता अभियान

हिसार,
चुनाव आचार संहिता के नाम पर सुरक्षा के पुख्ता प्रबंध प्रदेश भर में किए गए है। लेकिन इसका बड़ा खमियाजा व्यापारियों को भुगतना पड़ रहा है। इस समय प्रदेश की अनाज मंडियों में सरसों और गेहूं का सीजन चल रहा है। व्यापारी किसानों की उपज को खरीदने में लगे हुए है। किसानों को देने के लिए लाखों रुपयों का लेन—देन भी व्यापारी कर रहे है।
सीजन के इस समय में व्यापारियों को रोजाना लाखों रुपयों का भुगतान करना पड़ता है। ऐसे में व्यापारियों को ये पैसा इधर—उधर से मांगकर भी लाना पड़ता है। लेकिन आदर्श चुनाव संहिता के दौरान चल रही चैकिंग के दौरान ऐसे व्यापारियों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
शुक्रवार को प्रदेश में 2 स्थानों पर व्यापारियों के काफी पैसे पुलिस प्रशासन ने पकड़कर इनकम टैक्स विभाग के हवाले किए। आदमपुर में एक व्यापारी से साढ़े 22 लाख की राशि और कैथल में एक व्यापारी से 22 लाख रुपए की राशि पुलिस ने पकड़ी। दोनों व्यापारी अनाज का काम करते है। दोनों पैसे व्यापार के लिए लेकर आए थे। पुलिस की सर्तकता से दोनों को पकड़ा गया। लेकिन इसके बाद मीडिया ने दोनों को ऐसे पेश किया जैसे व्यापारियों ने कोई बड़ा गुनाह किया है।
आदमपुर के व्यापारी ने पुलिस और टैक्स अधिकारियों के समक्ष पकड़ी गई राशि के सबुत पेश करने की बात कही है। व्यापारी ने बताया कि उसकी अनाज मंडी में आढ़त की दुकान है और कुछ दिन पहले ही यह नकदी भुगतान के लिए बैंक से निकलवाई थी। उसका यह पैसा पक्के का है। इसके बाद भी मीडिया में व्यापारी का थाने में बैठे का फोटो राशि सहित छापा गया है। इससे न केवल व्यापारी की छवि धूमिल होती है बल्कि कई लोग व्यापारी को संदिग्ध नजरों से भी देखने लगते है। इसी प्रकार कैथल के व्यापारी ने पुलिस को बताया कि वह धान की बकाया राशि लेकर आया है। इसके वो सबुत भी अधिकारियों को दे देगा। यहां भी मीडिया ने व्यापारी का गांव और नाम छापकर उसके लिए भविष्य की परेशानियों को खड़ा कर दिया है।
दरअसल, पुलिस प्रशासन को ऐसे मामलों में थोड़ी और सतर्कता बरतनी चाहिए। पुलिस को थाने में बैठे व्यापारी का फोटो, वीडियो और जानकारी मीडिया से तब तक शेयर नहीं करनी चाहिए—जब तक व्यापारी का गुनाह तय नहीं हो जाता। विभागीय जांच के बाद ही जानकारी मीडिया को देनी चाहिए ताकि व्यापारी मीडिया ट्रायल का शिकार न हो पाए। चुनाव आयोग को ऐसे मामले में आगे आकर व्यापारियों के लिए विशेष जागरुकता अभियान चलाना चाहिए। इस समय व्यापारियों को समझ नहीं आ रहा कि वे वास्तव में कितना पैसा लेकर चल सकते है।
अलग—अलग जगहों से आधी—अधूरी जानकारियों के कारण साहुकार होते हुए भी व्यापारियों के साथ गुनाहगार जैसा व्यवहार हो जाता है। व्यापारियों को समझ नहीं आ रहा है कि आखिर वे कितना पैसा साथ लेकर चल सकते है। कहीं उन्हें 50 हजार रुपए तक छूट बताई जा रही तो कहीं 99 हजार रुपए तो कहीं 10 लाख रुपए की छूट बताई जा रही है। लेकिन वा​स्तिवक जानकारी नहीं होने के कारण व्यापारियों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। व्यापारियों के साथ—साथ आमजन को इसकी जानकारी चुनाव आयोग को समझानी चाहिए कि किस सूरत में कितनी नगदी वे लेकर चल सकते है और नगदी लेकर चलने के लिए उन्हें किस—किस प्रकार दस्तावेज अपने साथ रखने है।

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