बीकानेर
राजस्थान के चुनावी रण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के तमाम दांवपेच पर इस बार मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की रणनीति, मेहनत और सांगठनिक क्षमता भारी पड़ती दिखाई दे रही है। प्रदेश की 25 सीटों के चुनावी नतीजे तो 23 मई को सामने आएंगे लेकिन इतना जरूर तय है कि पिछली बार वसुंधरा राजे जैसा प्रदर्शन तो इस बार मोदी और शाह मिल कर भी नहीं दोहरा पाएंगे।
सत्ताधारी पार्टी के पक्ष में रहते हैं लोकसभा नतीजे
पिछले लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी चार महीने पहले ही सत्ता में पूर्ण बहुमत के साथ आई थी। राजस्थान में पहली बार भाजपा ने 163 सीटें जीतकर कांग्रेस को चारों खाने चित कर दिया था। ऐसे हालात से कांग्रेस उबरी भी नहीं थी कि लोकसभा चुनाव सिर पर आ गए थे। पराजित और निराश कांग्रेस मोदी लहर के आगे बिखर गई और उसे सभी 25 सीटों पर हार का सामना करना पड़ा।
इस लोकसभा चुनाव में बहुत कुछ बदला-बदला सा रहा। भाजपा की जगह कांग्रेस की सरकार सत्ता में आ चुकी थी। राजनीति के जादूगर माने जाने वाले अशोक गहलोत के सत्ता में आने के कारण कांग्रेस में जान आ गई थी। कांग्रेस 2014 जैसी हालत में नहीं थी तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चमक भी पहले जैसी नहीं रही थी। यह भी सच है कि सत्ताधारी पार्टी को लोकसभा चुनाव में फायदा मिलता आया है।
महारानी रूठी रूठी रहीं, बेटे पर फोकस रखा
राजस्थान में भाजपा के पास कोई बड़ा चेहरा नहीं था वहीं पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भी पार्टी से रूठी-रूठी रही। उन्होंने खुद को अपने बेटे दुष्यंत सिंह को जिताने के लिए झालावाड़ तक ही सीमित कर लिया था। उधर, भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व ने राजस्थान को केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर के भरोसे छोड़ दिया। वे मोदी की अपेक्षा के अनुरूप पार्टी में आपसी समन्वय बनाने में कामयाब नहीं रहे। मोदी के ही एक और नजदीकी प्रदेश संगठन महामंत्री चंद्रशेखर भी प्रभावहीन नजर आए।
गहलोत ने 185 विधानसभा सीटों तक प्रचार में फूंकी जान
अशोक गहलोत ने लोकसभा चुनाव की चुनौती को भांपते हुए अपना प्रचार पहले ही शुरू कर दिया था और चुनाव तक 200 में से 185 विधानसभा क्षेत्रों तक रैलियां और सभाएं कर कांग्रेसजनों को संगठित करने में मेहनत की। कांग्रेस से बगावत कर जीते सारे निर्दलीयों को भी राहुल गांधी की मौजूदगी में कांग्रेस में शामिल कर अशोक गहलोत अपने राजनीतिक कौशल का परिचय दे चुके थे। यही वजह रही कि गहलोत की चुनावी रणनीति का मुकाबला करने के लिए खुद प्रधानमंत्री और अमित शाह को मैदान में उतरना पड़ा। कांग्रेस में केवल अशोक गहलोत ही ऐसे मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कांग्रेस पर किए गए हर हमले का चुनौतीपूर्ण जवाब दिया है, इसीलिए मोदी हमेशा गहलोत को अपना टारगेट बनाकर चलते हैं।
मोदी ने राहुल गांधी के बाद गहलोत पर ज्यादा बोले हमले
गहलोत का नाम कांग्रेस संस्कृति और संस्कार को बढ़ाने वालों में सबसे ऊपर गिना जाता है। गुजरात में जब उन्हें प्रभारी बनाया गया तो वहां उनकी सांगठनिक क्षमता को देखकर नरेंद्र मोदी ने राजस्थान चुनावों में उन्हीं को अपना लक्ष्य बनाया। मोदी ने राहुल गांधी के बाद सबसे ज्यादा हमले भी गहलोत पर बोले लेकिन गहलोत ने उनके हर हमले का सधे शब्दों में प्रहार से जवाब दिया।
मोदी-मोदी के शोर में मतदाता दिखा शांत
इस चुनावों में यह फर्क जरूर देखने को मिला कि इस बार मतदाता शांत था। मोदी-मोदी के हल्ले के बीच मतदाता अपना मन प्रकट नहीं कर रहा था। राजस्थान की गद्दी से वसुंधरा राजे का जाना यूं ही नहीं हुआ था बल्कि उसे बाकायदा अपने ही लोगों ने विदाई दी थी। राजस्थान में यह सत्ता परिवर्तन बिना रक्तपात की क्रांति जैसा था जिसमें घर के योद्धाओं ने घर में ही सेना के घुटने टिका दिए थे।
पीएम नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह से 36 का आंकड़ा रखने वाला कोई मुख्यमंत्री और नेता इनके सामने नहीं टिक पाया था तो वसुंधरा राजे की बात कुछ अलग नहीं हो सकती थी। वसुंधरा राजे ने विधानसभा चुनाव के दौरान अपनी ताकत खुलकर दिखाई होती तो आज राजस्थान में लोकसभा चुनाव में उनका दबदबा दूसरी तरह का होता। वसुंधरा राजे के पास ताकत तो थी पर दिखाने का साहस नहीं था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह पूरे देश में भाजपा की बिखरती साख को समेटने में लगे हुए थे इसलिए राजस्थान में वे अधिक समय नहीं दे पाए। दूसरी ओर कांग्रेस अपना सब कुछ दांव पर लगाने को तैयार थी। यह अतिशयोक्ति नहीं होगी कि इस बार अशोक गहलोत की घेरेबंदी में मोदी और शाह की जोड़ी को ज्यादा सफलता मिलना मुश्किल लगता है। उनके हर उम्मीदवार को अपने स्थानीय नेताओं के भितरघात से जूझना पड़ा है तो कई जगह कांग्रेस के उम्मीदवारों से संघर्ष में दिखाई दे रहे थे।
प्रदेश की कुल 10 सीटों को वीआईपी सीट माना जा सकता है। इनमें सबसे चर्चित सीट जयपुर ग्रामीण की है जहां केंद्रीय मंत्री राज्यवर्द्धन सिंह दुबारा अपना भाग्य आजमा रहे हैं। वहीं शहर में रामचरण बोहरा भी अपनी दूसरी पारी में रन बनाने उतरे हैँ। सबसे महत्वपूर्ण दो सीटों पर परिणाम चौंकाने वाले आ सकते हैं। पहली जोधपुर सीट है जहां मुख्यमंत्री के बेटे वैभव गहलोत को पहली बार सीधे सांसद के चुनाव में उतारकर कांग्रेस ने केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह के सामने मुश्किल खड़ी कर दी वहीं झालावाड़ में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के पुत्र दुष्यंत सिंह है जो इस बार संघर्ष में उलझ रहे हैं।
इसी तरह अलवर में राहुल गांधी के सखा भंवर जितेंद्र और नागौर में ज्योति मिर्धा अपने दम पर सीट निकाल सकते हैं। बीकानेर में केंद्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल पार्टी के भीतर असंतोष के झूले पर खुद का संतुलन बनाने में लगे रहे तो पाली में पीपी चौधरी भी संघर्ष कर रहे हैं। बाड़मेर, सीकर, टोंक, दौसा और धौलपुर की सीटों पर कांग्रेस भारी पड़ती नजर आ रही है। बाकी सीटों पर भाजपा को ही अपनी सीटों को बचाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। कांग्रेस तो अपनी पुरानी सीटों पर फिर से कब्जा करने की मेहनत ही कर रही है। राजस्थान में यह देखना बेहद रोमांचक रहेगा कि मोदी का नाम राजस्थान में बुलंदी पर रहता है या अशोक गहलोत का परचम फहराएगा।
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