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लालासर साथरी में अंतरराष्ट्रीय मरुस्थलीकरण व सूखा के विरुद्ध संघर्ष दिवस पर कार्यक्रम 17 को : स्वामी सच्चिदानंद

जाम्भाणी दर्शन के माध्यम से पारिस्थितिकी प्रणाली की बहाली (इकोलॉजिकल रेस्ट्रेशन) को चुना गया

प्रोजेक्ट की कोऑर्डनेटर ममता बिश्नोई करेंगी परियोजना का नेतृत्व

हिसार,
वर्तमान समय में पर्यावरण संरक्षण दुनिया की महत्ती आवश्यकता है और इसी के तहत विश्व भर में पर्यावरण संरक्षण की दिशा में स्थानीय पारिस्थितिकी के महत्व को साथ रखते हुए विभिन्न प्रयास किए जा रहे हैं। इसी के चलते यूएनईपी के कार्यक्रम फेथ फॉर अर्थ काउंसलर के तहत परियोजना ‘जांभाणी दर्शन’ के माध्यम से पारिस्थितिकी प्रणाली की बहाली (इकोलॉजिकल रेस्ट्रेशन) को चुना गया है। इस परियोजना का प्रारंभ लालासर साथरी में 17 जून को अंतरराष्ट्रीय मरुस्थलीकरण व सूखा के विरुद्ध संघर्ष दिवस को किया जाएगा। परियोजना का नेतृत्व ममता बिश्नोई करेंगी जो इस प्रोजेक्ट की कोऑर्डनेटर भी है जबकि इनके सहयोगी पिनाकी दास गुप्ता होंगे जो यूएनईपी एफईसी रिपोर्ट के सह-लेखक और कार्यक्रम के तकनीकी भागीदार हैं। परियोजना के अंतर्गत इस साल एकलाजिकल रेस्टरैशन का प्रतिरूप लगभग दो एकड़ भूमि में लालासर साथरी बीकानेर में बनाया जाएगा जिसमें पर्यावरण संरक्षण, जैव विविधता व सहअस्तित्व देखने को मिलेगा।
बिश्नोई समाज के संस्थापक गुरू जम्भेश्वर के निर्वाण स्थल लालासर साथरी (बीकानेर) के मंहत स्वामी सच्चिदानंद ने बताया कि इस परियोजना में पर्यावरणीय प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता के नुकसान के संकट को रोकने के लिए विज्ञान और आस्था के साथ काम करना शामिल है। यह मान्यता पूरे बिश्नोई समुदाय को समर्पित है, जिन्होंने सदियों से स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र को संरक्षित करने के लिए आवाज उठाई है और कठिनाइयों का सामना किया है। विगत पांच सदियों से बिश्नोई समाज पर्यावरण संरक्षण व प्राकृतिक सहअस्तित्व का जीवन जीते हुए स्वंय में दुनिया के लिए एक उदाहरण है और अब जबकि पूरी दुनिया इस दिशा में सजग हो रही हैं तो गुरु जंभेश्वर भगवान के प्रकृति संबंधित सिद्धांतो का परिचय दुनिया से आवश्यक है और यह परियोजना इस दिशा में एक सकारात्मक कदम है।
मंहत स्वामी सच्चिदानंद ने बताया कि परियोजना के तहत कृषि, वानिकी, जल संरक्षण के विशेषज्ञों से युक्त एक बहु-विषयक टीम को साथ लेकर कार्य किया जाएगा। इस पहल का लक्ष्य गुरु जम्भेश्वर भगवान की प्रकृति के साथ सहअस्तित्व की विचारधारा और पारंपरिक ज्ञान प्रणाली से प्रेरणा लेते हुए 2030 तक 2000 एकड़ क्षेत्र को विस्तारित करना है। इस प्रस्तावित परियोजना के लिए निर्धारित कार्यक्रम तीन प्रमुख लक्ष्य है जिन्हें सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स कहा गया है। इसके तहत बिंदु संख्या 6, 13 और 15 को लक्षित करता है। इनके अंतर्गत बिंदु संख्या 6 सभी क्षेत्रों में जल के किफायती उपयोग को बढ़ावा देना, ताजा जल की आपूर्ति व निकासी सुनिश्चित करना जिससे जल का अभाव दूर हो सके। बिंदु संख्या 13 जलवायु परिवर्तन का असर कम करने, परिवर्तन के अनुरूप ढलने, प्रभाव घटाने व जल्दी चेतावनी देने के संबंध में मानवीय व संस्थागत क्षमता, शिक्षा व जागरूकता पैदा करने की व्यवस्था में सुधार करना है। बिंदु संख्या 15 के तहत जीव जंतुओं और वनस्पति की संरक्षित प्रजातियों के अवैध शिकार और तस्करी को समाप्त करने के लिए तत्काल प्रभावी कार्रवाई व अवैध वन्य जीव उत्पादों की मांग और आपूर्ति को समाप्त करना है। पर्यावरण एवं जीव रक्षा से जुड़े हुए सभी संस्था एवं व्यक्ति विशेष को कृषि वानिकी, जीव संरक्षण, जैव विविधता, जल संरक्षण इत्यादि के बारे में प्रशिक्षण, तकनीकी सहयोग, उचित मार्गदर्शन दिया जाएगा तथा उनकी सफलता की कहानियों को विश्व पटल पर विभिन्न संस्थाओं के साथ सांझा किया जाएगा।

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