(निशा महता, मिसेज नार्थ इंडिया)
प्रतिवर्ष 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। भारत के पूर्व राष्ट्रपति डाॅ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म-दिवस के अवसर पर शिक्षकों के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए भारतवर्ष में शिक्षक दिवस 5 सितंबर को मनाया जाता है। भारतीय समाज में शिक्षक वर्ग का अपना एक विशिष्ट स्थान सदा से रहा है। शिक्षक को गुरु की उपाधि दी गई है। गुरु का स्थान हमारी संस्कृति में ईश्वर से ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है। कहा जाता है ‘गुरु बिन गति नही होती’। हमारे सबसे पहले गुरु हमारे माँ—बाप होते है। जीवन में माता-पिता का स्थान कोई नही ले सकता। क्योंकि वे ही हमें इस खूबसूरत दुनियां में लाते हैं।
मां—बाप के बाद स्थान आता है शिक्षा देने वाले गुरु अर्थात शिक्षक का। जीने का असली सलीका हमें शिक्षक ही सिखाते है। शिक्षक व माता-पिता बच्चों को सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते है। माता—पिता जहां जीवन में आगे बढ़ने में सहायक होते है वहीं शिक्षक जीवन को गति देने और उसे संवारने का काम करते है। इसके लिए प्रत्येक इंसान माता—पिता व शिक्षक के ऋण से कभी मुक्त नहीं हो सकता। माता—पिता कच्ची मिट्टी को एक आकार देकर उसे शिक्षक को सौंप देते है। शिक्षक उसे संवारने का काम करता है।
अगर शिक्षक नहीं होते तो इंसान का जीवन जानवरों से भी बद्तर होता। हर तरफ अशिक्षा और अज्ञानता का वास होता। मानव कभी आदिमानव से इंसान बनने का सफर तय नहीं कर पाता।
विश्व आज 21 सदी में प्रवेश कर रहा है। इसका पूरा दायित्व शिक्षक समाज ने निभाया है। अच्छे—बुरे की पहचान करवाने से लेकर समय—समय पर शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव करके आधुनिक मानव व समाज निर्माण का कार्य शिक्षक वर्ग ही करता आ रहा है। इसी लिए शिक्षक वर्ग को भारतीय संस्कृति में समाज की रीढ़ कहा जाता है। जैसे हम एक छोटे से पौधे की पानी—खाद देकर देखभात करते है ताकि वो वृक्ष का रुप लेकर फल व छांव देने का काम करे, ठीक इसी तरह से शिक्षक साधारण पौधे रुपी बच्चों को सींच कर उसे एक विशाल वृक्ष बनाने की कोशिश करते है।
बिना शिक्षा प्राप्त किए कोई भी व्यक्ति अपनी परम ऊचाँइयो को नहीं छू सकता। हमें शिक्षकों का सम्मान करना चाहिए क्योंकि उन की मेहनत के कारण की हम समाज के सभ्य नागरिक बन पाते है।
शांति का पढ़ाया पाठ, अज्ञान का हटाया अंधकार।
शिक्षक ने सिखाया हमें, ज्ञान—सेवा—भाव और प्यार।।
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