हिसार

हिसार में नहीं दिख रहा चुनावी रंग, लोगों में अभी नहीं उत्साह

हिसार,
हिसार विधानसभा कांटे की टक्कर के लिए पहचानी जाती है। इस बार ऐसा नहीं है। चुनावी मौसम में लोगों में कोई विशेष उत्साह दिखाई नहीं दे रहा। व्यापारी अपने काम में लगे हुए है। चुनावी चर्चा तक करने में वे रुचि नहीं दिखा रहे। इसका मुख्य कारण जिंदल परिवार और पंजाबी समुदाय से दमदार चेहरा किसी पार्टी से मैदान में ना आना भी माना जा रहा है।
पिछली बार के चुनाव की बात ​की जाए तो हिसार का चुनाव काफी रोचक था। भाजपा के प्रत्याशी डा. कमल गुप्ता को जीताने के लिए मीडिया किंग सुभाष चंद्रा ने दिन—रात एक कर रखा था। मुम्बई के कई स्टार हिसार की गलियों में दिखाई दे रहे थे। कांग्रेस की तरफ से सावित्री जिंदल को जीताने के लिए कई कांग्रेसी दिग्गज जुटे हुए थे। हजकां की तरफ से गौतम सरदाना ने सबकी नींद उड़ा रखी थी।
2014 के चुनाव में हर किसी के जुबान पर इन तीनों का नाम था। काम—काज से ज्यादा व्यापारी चुनाव में रुचि दिखा रहे थे। डा.कमल गुप्ता के पक्ष में भाजपा के कार्यकर्ता अन्य विधानसभा क्षेत्रों से आकर भी प्रचार में लगे थे। भाजपाईयों की मेहनत के बल पर पहली बार हिसार में कमल खिला था। जिंदल परिवार को हार का सामना करना पड़ा था।
इस बार जिंदल परिवार चुनावी मैदान में नहीं है। गौतम सरदाना भाजपा में शामिल होकर मेयर बन चुके है। पिछले धुरंधरों में इस बार केवल भाजपा से डा. कमल गुप्त मैदान में है। कांग्रेस से रामनिवास राड़ा और जेजेपी से जितेंद्र श्योराण उनको चुनौती देने में लगे है लेकिन लोकसभा चुनावों के बाद हिसार के लोगों का रुझान’एकतरफ’ है। ऐसे में यहां पर चुनावी माहौल बन नहीं पा रहा है।
दुकानदार चुनावों की जगह दिवाली की तैयारियों में लगे हुए है। जब नेता जी उनके पास वोट मांगने आते है तो हाथ जोड़कर औपचारिकता पूरी कर फिर अपने काम में लग जाते है। पिछले चुनावों में खचाखच भरे रहने वाले चुनावी कार्यालयों में अब वर्कर अपनी हा​जिरी लगवाने आते है और मुहं दिखाकर चले जाते है। चुनाव में महज 11 दिन का समय बचा है। ऐसे में अब तक चुनावी माहौल का ना गर्माना साफ करता है कि हिसार में इस बार कड़ा मुकाबला नहीं है। कड़ा मुकाबला ना होने के कारण लोगों की रुचि इस चुनाव में ज्यादा नहीं है।

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