हिसार,
जिला में टिड्डी के प्रकोप की आशंका के मद्देनजर कृषि विभाग द्वारा अलर्ट जारी किया गया है। टिड्डी के संबंध में विभाग के अधिकारी किसानों को जागरूक कर रहे हैं। उपमंडल कृषि अधिकारी ने बताया कि राजस्थान के जिलों में फसलों पर टिड्डी का प्रभाव देखने को मिला है। इसके दृष्टिïगत सीमावर्ती जिला होने के चलते हिसार में भी टिड्डी का प्रकोप हो सकता है लेकिन किसान सावधानी अपनाकर इससे बचाव कर सकते हैं।
उन्होंने बताया कि हालांकि जिला में अभी तक टिड्डी से संबंधित कोई मूवमेंट नहीं है, लेकिन फिर भी टिड्डी की आशंका को देखते हुए किसानों के लिए अलर्ट जारी किया गया है। उन्होंने बताया कि टिड्डी दल फसलों एवं पेड़-पौधों को खाकर नुकसान पहुंचाती है। यह एक अंर्तराष्ट्रीय कीट है जो दो रूप में पाई जाती है। अकेले रहने वाली टिड्डी को सोलेटरी एवं झुंड वाली टिड्डी को ग्रिगेरियस अवस्था कहते हैं। टिड्डी का रंग पीला, गुलाबी एवं काली धारियों युक्त होता है तथा इनके शिशुओं का रंग पहले गुलाबी तथा बाद में प्रजनन योग्य होने पर पीला हो जाता है। उन्होंने बताया कि एक पूर्ण टिड्डी का वजन 2 ग्राम तथा लंबाई 40-60 मिलिमीटर होती है, जिसके उडऩे की क्षमता 13 से 15 किलोमीटर प्रतिघंटा है। भारत में टिड्डियों का प्रजजन केंद्र मुख्य रूप से राजस्थान तथा पाकिस्तान का सीमावर्ती क्षेत्र है। किसान भाइयों को टिड्डी के विनाशकारी प्रकोप से बचाने के लिए इसके जीवन चक्रकी जानकारी होनी चाहिए। टिड्डी दल का आर्थिक कगार 10 हजार टिड्डी प्रति हेक्टेयर यानि एक टिड्डी प्रति वर्ग मीटर या 5.6 टिड्डी प्रति पौधा हो तो इसका समय रहते नियंत्रण करना अति आवश्यक है। इसके लिए क्लोरोपोइरीफॉस 20 प्रतिशत ईसी 1.2 लीटर, क्लोरोपोइरीफॉस 50 प्रतिशत ईसी 480 मिलीलीटर तथा लाम्दा साइलोथ्रिन 5 प्रतिशत ईसी 400 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से स्प्रे करके इसकी रोकथाम की जा सकती है। उन्होंने बताया कि इसके अतिरिक्त टिड्डी दल दिखाई देने पर डीजे, थाली, ढोल, नगाड़े तथा खाली पीपों की आवाज से टिड्डी दल को फसलों एवं पेड़-पौधों पर बैठने से रोका जा सकता है। इस संबंध बारे में अधिक जानकारी के लिए अपने क्षेत्र के खंड कृषि अधिकारी या कृषि विकास अधिकारी के कार्यालय में संपर्क कर सकते हैं।