सरकारी विभागों की बदहाली के लिए सरकार की नीतियां व प्रबंधन जिम्मेवार है
हिसार।
परिवहन, बिजली, बैंक, बीमा, बी.एस.एन.एल, रेल, हवाई जहाज आदि सार्वजनिक विभागों का निजीकरण कोई व्यवस्था नहीं बल्कि पूर्णरूप से रियासतीकरण है और आने वाले समय में इसके दूरगामी परिणाम बहुत ज्यादा खतरनाक होंगे।
यह बात हरियाणा कर्मचारी महासंघ से संबंधित रोडवेज कर्मचारी यूनियन के जिला प्रधान राजपाल नैन ने एक बयान में कही। उन्होंने कहा कि निजीकरण को लेकर सरकार ने जो रास्ता चुनाव उसके चलते आगामी 50-60 वर्ष बाद हम वहीं पर पहुँच गए जहां से चले थे। उन्होंने कहा कि 1947 में जब देश आजाद हुआ था उस समय चुनी गई पहली सरकार और उसके मंत्री देश की तमाम रियासतों को देश का हिस्सा बनाने के लिए परेशान थे करीब 562 रियासतों को भारत में मिलाने के लिए साम, दाम, दण्ड व भेद की नीति अपनाकर हर संभव प्रयास कर उनको देश में मिलाया गया, क्योंकि देश की तमाम सम्पत्ति इन्ही रियासतों के पास थी। इनके विलय के बाद देश की सारी सम्पति सिमट कर गणतांत्रिक पद्धति वाले संप्रभुता प्राप्त भारत के पास आ गई। इसके बाद धीरे-धीरे रेल, बैंक, कारखाने आदि का राष्ट्रीयकरण किया गया जिसके कारण एक शक्तिशाली राष्ट्र भारत का निर्माण हुआ।
जिला प्रधान ने कहा कि आजादी के बाद फिर से हालात वहीं पहुंच गए हैं और फासीवादी ताकतें पूंजीवादी व्यवस्था के कंधे पर सवार होकर राजनैतिक परिवर्तन पर उतारू होने लगी हैं। लाभ और मुनाफे की विशुद्ध वैचारिक सोच पर आधारित राजनैतिक लोग देश को फिर से 1947 से पहले का भारत बनानकर देश की सम्पति पुन: रियासतों के पास सौंपने की कुत्सित साजिश की जा रही है। उन्होंने कहा कि ऐसा होने पर देश उन पूंजीपतियों के आधीन होगा जो परिवर्तित रजवाड़े की शक्ल में उभर कर सामने आएंगे। ये रजवाड़े होंगे कुछ पूंजीपति घराने और बड़े-बड़े राजनेता। इनके चलते देश में लोकतंत्र का वजूद ही खत्म हो जाएगा। उन्होंन कहा कि कुछ समय बाद नवरियासतीकरण वाले लोग कहेंगे कि देश के सरकारी स्कूल, कॉलेज और अस्पतालों से कोई लाभ नहीं है अत: इनको भी पूर्ण रूप से निजी हाथों में सौप दिया जाए।
जिला प्रधान राजपाल नैन ने कहा कि अगर देश की आम जनता प्राईवेट स्कूल ओर अस्पतालों के लूटतन्त्र से संतुष्ट है तो रेलवे, बी. एस एन एल आदि बड़े बड़े संस्थानों को भी निजी हाथों में जाने का स्वागत करे। उन्होंने कहा कि हमें यह सोचना चाहिए कि हम बेहतर व्यवस्था बनाने के लिए सरकारों का चयन करते हैं ना कि देश की सरकारी सम्पति मुनाफाखोरों को बेचने के लिए। उन्होंने कहा कि इस समय देश की सम्पति को बेचने के लिए ऐसा सब कुछ सुनियोजित तरीके से किया जा रहा है। साजिश के तहत सरकार पहले तो सरकारी संस्थानों को ठीक से काम नहीं करने देती फिर विभागों में घाटा दिखाकर इनको जनता में बदनाम किया जाता है ताकि सरकारी विभागों के निजीकरण को लेकर कोई आवाज नहीं उठाए।
राजपाल नैन ने कहा कि यदि किसी विभाग में घाटा है या प्रबंधन ठीक नहीं है या आवश्यकतानुसार वहां कर्मचारियों की कमी है तो सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि उसको ठीक करे। उन्होंने कहा कि वैसे भी सरकारों का काम सामाजिक होता मुनाफाखोरी नहीं। इसलिए देश व प्रदेश की आम जनता की जिम्मेदारी बनती है कि वो सरकारों को अहसास कराएं कि सरकारें अपनी जिम्मेदारी से भाग नहीं सकती और ना ही इस तरह से देश की सम्पति को निजी हाथों में सौंप सकती।
जिला प्रधान ने कहा कि पूंजीपतियों का लक्ष्य केवल लाभ कमाना होता है उनको समाज व देशहित से कोई लेना-देना नहीं होता है। उन्होंने कहा कि यदि देश पूंजीपतियों के हाथ में आ गया तो वो शायद 1947 से पहले के रजवाड़ों से भी ज्यादा बेरहम और सख्त होंगे। उनका हर फैसला पैसा उगाही करने वाले अंग्रेज की तरह होगा। उन्होंने पूरे देश में अव्वल दर्जे की परिवहन सेवा देने वाली व प्रदेश की लाईफ लाईन कही जाने वाली हरियाणा रोडवेज में हिसार डिपो का उदाहरण देते हुए कहा कि मौजूदा समय में हिसार डिपो के पास 217 बसों का बेड़ा है और इन बसों में से करीब 15-16 बसें प्रतिदिन कर्मचारियों की कमी के कारण वर्कशाप में खड़ी रहती हैं। इसके बावजूद सरकार ने किलोमीटर स्कीम के तहत 32 निजी बसें हायर करके हिसार डिपो में भेज दी हैं और 9 मिनी सरकारी बसें जो केवल महिलाओं के लिए चलाई जानी हैं। उन्होंने कहा कि हिसार डिपो में पहले ही कर्मचारियों की कमी है जिसके चलते रोडवेज प्रशासन के लिए इन किलोमीटर स्कीम की बसों व मिनी बसों का संचालन कर पाना असम्भव है। सरकार के आदेशानुसार किलोमीटर स्कीम की निजी बसों का संचालन जरूरी है। इस स्थिति में अगर रोडवेज प्रशासन इन निजी और मिनी बसों को सड़कों पर उतारेगा तो उस स्थिती में कर्मचारियों की कमी के कारण सरकार की करीब 50-55 बसें वर्कशॉप में खड़ी हो जाएंगी। जिला प्रधान राजपाल नैन ने कहा कि ऐसी स्थित अकेले हिसार डिपो की नहीं है अपितु पूरे प्रदेश के तमाम 24 डिपुओं की है। इससे पता चलता है कि सरकार का प्रबंधन सही मायने में कैसा है और रोडवेज व अन्य सरकारी विभागों की बदहाली के लिए सरकार की नीतियां व प्रबंधन पूर्ण रूप से जिम्मेदार है।