ना की थी कल्पना, ना कभी किया विचार,
समय कभी ऐसा भी आएगा, ना कभी हुए सपने में दीदार।
सोचना पड़ेगा मानव को, छोडऩा पड़ेगा अहंकार,
घर के अंदर रहेंगे बच्चे-बूढ़े, घर में ही रहेंगे फोतेदार।
कोरोना वायरस का डर इतना सताएगा, घर से ना कोई बाहर जाएगा,
कोई ना किसी को घर बुलाएगा, अड़ौसी-पड़ौसी या हो रिश्तेदार।
दिखेंगे खाली स्टेशन, बस स्टैण्ड, एयरपोर्ट जो होंगे कई हजार,
दिखेंगे बंद शॉपिंग मॉल, सिनेमा हॉल, छोटे-बड़े सब होटल फाइव स्टार।
बंद हो जाएगा व्यापार, परेशान होंगे सभी दुकानदार,
बंद नजर आएंगे बड़े-बड़े बाजार, सबको बदलना पड़ेगा व्यवहार।
ठहर जाएगा संसार, मानवता हो जाएगी लाचार,
बदलेंगी प्राथमिकताएं, बदलेंगे विभिन्न किरदार।
बदलेगा खान-पान, रहन-सहन, मेल-जोल आचार-विचार,
सिस्टम बदलेगा विवाह शादी का, बदलेगा तरीका मनाने का त्यौहार।
‘पुष्कर’ कहे बीमारी कर रही प्रहार, बिना हथियार, कैसे होगी नैया पार,
देश की नहीं होगी हार, बनेगा महाशक्ति सारी दुनिया रही निहार।
– पुष्कर दत्त
1669-ए, सैक्टर 16-17, हिसार
मो. 94163 38524