हिसार (राजेश्वर बैनीवाल),
लॉकडाउन के कारण आने-जाने पर लगी पाबंदियों के बीच जगह-जगह फंसे प्रत्येक प्रवासी श्रमिक की अपनी एक कहानी है, जिसमें मानवीय संवेदनाएं भी हैं, अपनों के बीच पहुंचने की ललक भी और अपने परिवार के प्रति चिंता की भावना भी। श्रमिकों के साथ-साथ इनके परिजनों व छोटे-छोटे मासूम बच्चों की संवेदनाएं व भावनाएं भी इनके जीवन के उतार-चढ़ाव को व्यक्त करती हैं। हिसार के रेलवे स्टेशन से लगातार दो दिन तक श्रमिक स्पेशल ट्रेनों के माध्यम से 2400 से अधिक प्रवासी श्रमिकों को बिहार पहुंचाया गया है। इसी दौरान प्रवासी श्रमिकों व इनके परिजनों की कहानियां हवाओं में तैरती दिखाई दीं।
रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर 1 पर, लखन सिंह अपनी पत्नी राधा व 6 साल की बेटी गुडिय़ा के साथ कुछ समय पहले बिहार से सैकड़ों कि लोमीटर दूर हरियाणा में रोजगार की तलाश में आया था। लाकडाउन हुआ तो पूरा परिवार सहम गया। शैल्टर हॉम्स में खाली रहकर दिन बिताना, भविष्य की सोचकर दिल बैठ जाता था। सरकार ने ट्रेन चलाई तो अपने घर लौट रहे इस श्रमिक के मन को दर्जनों सवाल कचोट रहे होंगे। मन में एक हताशा भी कि जिन सपनों के सहारे अपना देस छोड़कर यहां आया था वे कोरोना की मार के चलते अधर में ही छूट गए।
ट्रेन में बैठने से पहले बच्ची को कंधे पर बैठाए प्लेटफार्म की ओर चला जा रहा था। तभी रेलवे स्टेशन पर कोई मिलता है, बच्ची को स्नेह के साथ गुडिय़ा खिलौने, कुछ चॉकलेट देकर दोबारा आने का भावभरा न्योता भी देता है। तभी एक टीम बच्ची को दुलारते हुए श्रमिक को खाने का पैकेट, पानी की बोतल और टिकट देती है। जिला के प्रशासनिक अधिकारियों का भावपूर्ण निमंत्रण और व्यवहार ने उस कामगार के मन के तमाम सवाल और उलझनें खत्म कर दीं। अब उसका रिश्ता कायम हो गया, दो लोगों के बीच ही नहीं बल्कि दो जातियों, दो राज्यों, दो विचारधाराओं, रंगभेद जैसी मानसिकताओं को चकनाचूर करने वाला रिश्ता। मानवता का रिश्ता, जो शायद इस कामगार को फिर इस राज्य में दोबारा लाएगा, ये रिश्ता जीवनभर न भुलाने वाला रिश्ता है। अधिकारियों द्वारा दिया गया खिलौना हाथ में पकड़ते ही प्रवासी श्रमिकों के चेहरे पर यह सोचकर एक विशेष चमक आ गई कि घर पहुंचकर जब बच्चा पूछेगा कि पापा मेरे लिए क्या लाए तो कह सकूंगा कि बेटा तुम्हारे लिए ये खिलौना लाया हूं।
यह सुखद अनुभव केवल इस एक श्रमिक को नहीं बल्कि यहां से बिहार के लिए रवाना किए गए प्रत्येक कामगार के जीवन को छूता चला गया। यहां से ट्रेन की सीटी बजने के साथ ही इन श्रमिकों ने भावना के साथ हाथ हिलाकर, हाथ निकालकर, ताली बजाकर और धन्यवाद के न जाने कितने तरीकों से उनके साथ मानवीय और परिवार के सदस्यों जैसा व्यवहार करने वाले अधिकारियों-कर्मचारियों के लिए आभार जताया। उनके बारे में सोचने और उन्हें अपने घर, गांव और राज्य पहुंचाने के लिए हरियाणा सरकार द्वारा किए गए प्रयासों को संभवत: ये श्रमिक कभी भुला नहीं सकेंगे।
दरअसल, श्रमिकों को इस प्रकार का ट्रीटमेंट देने और उन्हें सुखद अहसास करवाने के पीछे हिसार की जिला उपायुक्त डॉ. प्रियंका सोनी की दूरदर्शी सोच और नारीत्व की भावना रही। बच्चों व महिलाओं के प्रति विशेष लगाव के चलते उपायुक्त ने जिला रेडक्रॉस सोसायटी के माध्यम से यह तमाम प्रबंध करवाए। इसके माध्यम से वापस अपने गृहराज्य जाने वाले श्रमिक खास होने का अहसास से भर उठे। उन्हें यह भाव भरा संदेश दिया गया कि वे भी हमारी ही तरह इंसान हैं और हमें उनकी भावनाओं की, उनकी कठिनाइयों की फिक्र है। कोरोना बीमारी के खात्मे और लॉकडाउन खुलने के बाद यहां से रवाना हुए श्रमिक संभवत: फिर काम की तलाश में हरियाणा की ओर रुख करेंगे।