हिसार,
‘मां’ यह वो अलौकिक शब्द है, जिसके स्मरण मात्र से ही रोम-रोम पुलकित हो उठता है। हृदय में भावनाओं का अनहद ज्वार स्वत: उमड़ पड़ता है और मनोमस्तिष्क स्मृतियों के अथाह समुद्र में डूब जाता है।
यह बात मां भ्रामरी देवी बनभौरी धाम ट्रस्ट के मुख्य महाप्रबंधक सुरेन्द्र कौशिक ने मातृ दिवस पर अपने आवास आयोजित एक कार्यक्रम में अपनी माता से बातचीत करते हुए कही। उन्होंने कहा कि ‘मां’ वो अमोघ मंत्र है, जिसके उच्चारण मात्र से ही हर पीड़ा का नाश हो जाता है। ‘मां’ की ममता और उसके आंचल की महिमा को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता है, उसे केवल महसूस किया जा सकता है। नौ महीने तक गर्भ में रखना, प्रसव पीड़ा झेलना, स्तनपान करवाना, रात-रात भर बच्चे के लिए जागना, खुद गीले में रहकर बच्चे को सूखे में रखना, मीठी-मीठी लोरियां सुनाना, ममता के आंचल में छुपाए रखना, तोतली जुबान में संवाद व अठखेलियां करना, पुलकित हो उठना, ऊंगली पकडक़र चलना सिखाना, प्यार से डांटना-फटकारना, रूठना-मनाना, दूध-दही-मक्खन का लाड़-लड़ाकर खिलाना-पिलाना, बच्चे के लिए अच्छे-अच्छे सपने बुनना, बच्चे की रक्षा के लिए बड़ी से बड़ी चुनौती का डटकर सामना करना और बड़े होने पर भी वही मासूमियत और कोमलता भरा व्यवहार…..ये सब ही तो हर ‘मां’ की मूल पहचान है। इस सृष्टि के हर जीव और जन्तु की ‘मां’ की यही मूल पहचान है।
सुरेन्द्र कौशिक ने कहा कि हमें केवल मातृ दिवस के दिन ही मां को याद नहीं करना चाहिए बल्कि हर दिन मां की पूजा करनी चाहिए। ‘मां’ की पूजा से ही देवता प्रसन्न होते हैं। यदि हम अपनी मां को खुश नहीं रख सकते तो किसी मंदिर में जाकर पूजा अर्चना करने का कोई फायदा नहीं है। यदि मां खुश है तो भगवान अपने आप खुश हो जाएंगे। उन्होंने कहा कि वर्तमान में हर जगह अनाथ आश्रम बनने का जिक्र आता है लेकिन हमें प्रयास करने चाहिए कि अनाथ आश्रम बनने की नौबत ही न आए। अनाथ आश्रम में अपनी मां या बाप को भेजने से ज्यादा बुरी बात व पाप और कुछ नहीं हो सकता।